– – ओमप्रकाश सिंह
आजुए ईमेल से मिलल भोजपुरी पंचायत पत्रिका के नवम्बर 2014 अंक देखि के मन मिजाज खुश हो गइल. अगर भोजपुरी से छोह के बात हटा दिहल जाव त पत्रिका के कलेवर बहुते स्तरीय बा. सोना पर सोहागा वाला बाति होखीत अगर ई पत्रिका भोजपुरी में छपल करीत. बाकिर एकरा प्रकाशक के मालूम बा कि तब एक त एह भोजपुरी पत्रिका के दायरा घट जाई आ दोसरे हर महीना नियम से स्तर के सामग्री जुटावल कठिन रही.
आ हमरो लगे कवनो कारण नइखे कि एह बात के विरोध कर सकीं. रोजे देखत बानी कि भोजपुरी के एक से एक नेता आ आन्दोलनकारी हिन्दी में उकीचत बाड़े. उनको मालूम बा कि भोजपुरी में लिखिहें बोलीहें त राजनीति करे में फायदा ना होखी़. एहसे ऊ आपन लेख, आपन किताब, आपन पत्रिका, आपन विज्ञप्ति, आपन कार्यक्रम सब कुछ हमेशा हिन्दी में करेंले आ कुछ लोग ओहू ले आगा बढ़िके अंगरेजी में लागल बा. संतोष अतने बा कि भोजपुरी पंचायत पत्रिका के हर अंक में कुछ ना कुछ भोजपुरी के सामग्री जरूर रहेला आ बाकी में भोजपुरी सरोकारन से जुड़ल बात.
एहू अंक में ‘फिर उठी भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता की माँग’, ‘माॅरीशस : खेतों से सत्ता तक गिरमिटिया मजदूर’, ‘माॅरीशसीय भोजपुरी साहित्य’, ‘गिरमिटियों ने रचा दुनिया का स्वर्ग – माॅरीशस’, ‘विकास के ध्वजवाहक हैं प्रवासी’, भोजपुरी सिनेमा से जुड़ल खबर वगैरह हिन्दी में रहला का बावजूद भोजपुरी सरोकारन से जुड़ल सामग्री बा.
व्यंग लेख ‘नेता काका’, ‘बतकुच्चन’ के एगो कड़ी, कहानी ‘पवित्तर लहर’, आ ‘मॉरीशस : आपन बोली-आपन लोग’ नाम के लेख भोजपुरी में दे के भोजपुरी पढ़े वाला लोग के तोस देबे जोग बा.
चलत चलत एगो निहोरा कइल बेजांय ना होखी कि प्रूफ के बहुते गलती बा जवन ना होखे के चाहीं. एह से पत्रिका के मान पर चोट चहुँपेला.
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