राड़ आ राँड़ के गठबन्हन – बतकुच्चन (207)
देश के राजनीति समुझे बाला एहघरी परेशान बाड़ें. उनुका बुझात नइखे कि हो का रहल बा. एही अझूराहट में हमहूं बानी. कि राड़ आ राँड़ के गठबन्हन कइसे भइल आ ई देश आ समाज ला फायदेमन्द रही कि नुकसानदेह. आईएनडीआई गठबन्हन का नाम का बीचे लागे वाला चार गो छेद ह का – मूसकोइल के मूँह आ कि साँप के बिल ? हो सकेला कि केंचुआ के बनावल छेद होखे. बाकिर ऊ जवन होखो ओह पर बहस बतकुच्चन करे ला रोजे कुकुरबझाँव देखे के मिलिए जाला कवनो ना कवनो टीवी चैनल पर. अब हर सूत्रधार अमिताभ अग्निहोत्री त हो ना सके. बाति जब अमिताभ अग्निहोत्री के आ गइल त वादा बा अगिला कवनो लेख में उनुका पर लमहर चरचा करब. आजु त राड़ आ राँड़े ले अपना के समेट के राखब.
हर भाषा में अइसन अनेके शब्द होला जवना के कई गो माने निकलेला, कहले जाला कि नुक्ता का फेर से खुदा से जुदा हो जाला. अनेकार्थी शब्द बहुते काम के होलें. सबले बड़का फायदा त ई होला कि अगर केहू ओकरा से नाराजगी देखावे त ओकरा के ओह संदर्भ में पेश कर दीहल जाव जवना के अर्थ तनिका काबिले बरदाश्त होखे. एगो पुरनका लेख में हम जिक्र कइले रहीं कि सुबरन के तीनो ढूढें, कवि कामी और चोर. सुबरन माने स्वर्ण, सुन्दर काया, अउर निकहा वर्ण. एगो के तलाश में चोर होला, दुसरका के तलाश में कामी आ तिसरका का फेर में कवि पड़ल रहेलें.
आजु हम राड़ आ राँड़ के जिक्र देश के राजनीति का संदर्भ में ले आइल बानी. बतावे के जरुरत ना होखे के चाहीं कि के राड़ आ के राँड़. सभे जानत बा. बनारस का बारे में मशहुर ह कि –
राँड़, साँढ़, सीढ़ी, सन्यासी
एहसे बचे त सेवे काशी.
एह कहाउत में राँड़ के इस्तेमाल भइल बा काहें कि बनारस में राँड़न के संख्या बहुते बावे, घर परिवार के उपेक्षा से बेजार होके बहुते विधवा मेहरारु आपन बाकी के जिनिगी बनारस में बितावे चलि आवेली, राँड़ ओही विधवन ला दोसर शब्द ह. अब अइसन नइखे कि बनारस में राड़ कम होखेलें. उहो बेखोजले भेंटा जइहें. अब बनारस वालन ला ई कवनो नाराजगी के कारण ना होखे के चाहीं कि हम ओह शहर में राँड़न आ राड़न के बहुतायत बतावत बानी, ओहसे कई गुना शरीफ आ सभ्य लोग बनारस में मिलेला बाकिर जतना राँड़ आ राड़ बनारस में भेटा जइहें ओतना शायदे कवनो दोसरा शहर में भेंटइहें.
राजनीतिओ में राड़ आ राँड़ अनेके भेंटा जइहें अगर एह शब्दन के रउरा विशेषण का तरह देखीं. एहिजा हम ओकर इस्तेमाल संज्ञा का तरह करत बानी सर्वनाम का तरह ना. आ संज्ञा ओकरे के कहल जाला जवना जे कवनो खासे के पहचान होखल करे. रउरो सभे जानत बानीं कि देश के राजनीति के खास राँड़ आ राड़ केकरा के कहल जाला. साँच कहीं त एह राड़ आ राँड़ से सगरी देश परेशान बा. आ हो सकेला कि एहनी के समर्थक अब हमरा के परेशान करि देसु. बाकिर हम सोचत बानी कि भलहीं दुनिया में भोजपुरी बोलेवालन के गिनिति पैंतीस करोड़ से बेसी बतावल जात होखे, भोजपुरी पढे वाला लोग बहुते कम बा. इहाँ ले कि जे लोग भोजपुरिए में बतियावेला उहो लोग भोजपुरी पढ़े में असकस महसूस करेला. बड़-बड़ जने दहाइल जासु आ गदहा थाहे कतना पानी वाला बाति हो जाई अगर हम एह मामिला में आपन टाँग फसावल चाहब कि एह असकस के कारण का बा. जहाँ ले हमरा मालूम बा शुरु में भोजपुरी के लिपि कैथी होखत रहे. कैथी मतलब जवना लिपि में कायस्थ लोग लिखत करे. कैथी से हमार बेसी परिचय नइखे बाकिर शायद ओहमें कुछ अइसन रहल होखी  जवना से पढ़े में दिक्कत ना होखत होखी. बाकिर जबसे भोजपुरी ला देवनागरी लिपि के इस्तेमाल होखे लागल तबसे ई दिक्कत होखे लागल काहें कि हिन्दी उच्चारण में ह्रस्व ह्रस्व इकार आ दीर्घ दीर्घर ऊकार ना होखे आ नाहिए होला दीर्घ अ के प्रयोग. भोजपुरी में दीर्घ अ के इस्तेमाल खूबे होला. अब भोजपुरी के विद्वान लोग हमार माथ फोड़े आवे लागे त हमार जवन होखी भोजपुरी के त कुछ ना कुछ भल होइए जाई.
बाकिर हमरा पूरा भरोसा बा कि बहुते कम भोजपुरिहा एह लेख के पढ़े के जहमत उठइहें आ हमार लेख जंगल में मोर नाचल, के देखल वाला नियति हासिल कर ली. आ एही भरोसे हम राड़ आ राँड़ो से रार बेसाहे के कोशिश कइले बानी. दोसरे इहो भरोसा बा कि राड़ आ राँड़ के गठबन्हन सफल होखे के अनेसा नइखे.
आ भरोसा एकरो भरपूर बा कि रउरो  एह लेख पर कवनो टिप्पणी ठोके के जहमत ना उठाएब, भोजपुरी के एह पहिलका वेबसाइट जीयत रहो भा मरि जाव एकरो से रउरा का ? ना त रउरा टिप्पणी करब ना कवनो आर्थिक सहायता करब एही विश्वास का भरोसे अँजोरिया चलत रही जब ले चलि पाई. अगर गलती से मन क जाव त अंजोरिया के आर्थिक मदद दीहल कवनो मुश्किल काम नइखे. अपना बेंकिंग एप पर जाईं भा वैलेत पर आ ओहिजा से जवने मन करे – एगारह रुपिया से एगारह करोड़ ले – anjoria@uboi पर भेज सकीलें. एगारह करोड़ पर चिहुँकला के जरुरत नइखे काहे कि मुर्दा पर नव मन चढ़े भा नवासी मन का फरक पड़े के बा. देबे वाला त रउऱा एगारहो नइखीं.

 

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