सँझवत फेर शुरु हो गइल
भोजपुरी के एगो पत्रिका सँझवत, जवना के प्रकाशन आ संपादन डॉ रामरक्षा मिश्र विमल जी करेनी, के प्रकाशन बीच में कुछ समय ला रुक गइल रहुवे. भोजपुरी प्रकाशनन के ई एगो बड़हन समस्या होला कि समुचित वित्त पोषण का अभाव में एहनी के अकाल मृत्यु होखत रहेला. भोजपुरी प्रकाशन आ आप्शन ट्रेडिंग करीब एके तरह के शौक कहीं, व्यसन कहीं, बाकिर व्यवसाय त कबो मत कहीं. जइसे आप्शन ट्रेडिंग करे वाला पूंजी जुटावेला आ आ जाला बाजार में. कुछ दिन में जब पूंजी स्वाहा हो जाले त बाजार से विमुख हो जाला. फेर कुछ दिन बाद जब दोसरा नौकरी भा व्यवसाय से फेर पूंजी जुट जाला त दुबारा तिबारा लवट आवेला. काहे कि ओकरा के त ट्रेडिंग के कीड़ा कटले बा. ठीक एही तरह भोजपुरी प्रेमी आपन धनदाह करे भोजपुरी प्रकाशन के धंधा में उतर जाला. धन दाह का बाद कुछ दिन के विराम आ फेर जब कुछ धन हाथे आ जाव त फेरू प्रकाशन शुरु. भोजपुरी के पाठक खरीद ना सकसु कवनो भोजपुरी किताब भा पत्रिका. अइसन नइखे कि उनुका बेंवत में ना होला कवनो पत्र पत्रिका के सालाना भा आजीवन ग्राहक बनल. उनुकर बेंवत त अइसन होखेला कि ऊ भोजपुरी लिखनिहारन के मंडली जुटावत भोजपुरी के संस्था सम्मेलन करे में लागल रहेलें. शर्त बस एके गो होला कि उनुकर गुणगान कइल जाव.
एहसे जब सँझवत के नयका अंक हमरा लगे आइल त सोचनी कि रउरा सभ से साझा कर लीं. एह पत्रिका के कुछ पाठ चहनी कि अंजोरियो पर डाल दीं बाकिर एकर पीडीएफ जवना तरीका से बनावल गइल बा ओकरा के टेक्स्ट का रूप में बदलल कम से कम हमरा वश के बात नइखे. एहसे पूरा पत्रिका एहिजा अपलोड कर देत बानी. रउरो सभे पढ़ीं.
सँझवत के पुरनको कुछ अंक अंजोरिया पर उपलब्ध बाड़ी सँ. बाकिर जवन अंक हमरा लग अइबे ना कइल ओकरा के कइसे साझा करतीं.
विमल जी अंजोरिया ला कवनो नया नाम ना हईं. एक जमाना पहिले उहां के अंजोरिया पर नीक जबुन लिखत रहनी बाकिर बाद में नौकरी का उलझन में शायद समय ना मिल पावत रहल एहसे क्रम टूट गइल. वइसहूं भोजपुरी के परंपरा ह नौ कन्नौजिया तेरह चूल्हा वाला. बहुते कम अइसन संपादक प्रकाशक मिलिहें जे अनजान लिखनिहारन के रचना प्रकाशित करत होखे. सभकर आपन आपन मंडली बा. अंजोरिया कबो एह मंडली बनावे का फेरा में ना रहल. आ एकरे परिणाम भइल कि ना त तीन में रहल ना तेरह में. लगभग सौ से बेसी लिखनिहार के रचना अंजोर करे वाली अंजोरिया पर आपन रचना भेजल भोजपुरी के बड़का लिखनिहारन के हेठी के सवाल बन जाला.
मन के पीड़ा ना चाहतो उजागर होइए जाला. एहसे कुछ नीक जबुन कहा गइल होखो त माफ करब सभे. वइसे कवनो अंतर नइखे पड़ेवाला. भोजपुरी का समाज में अंजोरिया छँटुआ बन के रह गइल बिया. ए छूंछा तोहके के पूछा !
खैर भोजपुरी जीयत रही. अंजोरिया कवनो अकेला मंच त हवे ना. अलग बात बा कि जब दुनिया में कवनो वेबसाइट भोजपुरी में ना निकलत रहल तब से अंजोरिया के प्रकाशन हो रहल बा आ लगभग 22 बरीस के एह दौर में रउरा बताईं कि एह वेबसाइट पर रउरा कतना बेर आइल बानी ? अंजोरिया हम अपना व्यसन का तरह जियवले रखले बानी. रउरा सभे आईं भा ना, आपन लिखलका भेजीं चाहे ना, हमरा सेहत पर ओकर कवनो असर नइखे पड़े वाला. काहे कि वइसहूं हम अब पाकल आम हो गइल बानी. कबो टपक सकीलें.
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