– अभयकृष्ण त्रिपाठी
अरसा बाद एक बार फिर कलम उठवले बानी,
जानत बानी हम आग से बारूद सटवले बानी II
दीप क रोशनी से अनंत के नाता बा,
अन्हरन से देखे क बात हमारा ना सुहाता बा,
हर केहू जान के एक दूसरा के लूट रहल बा,
डाकू के मंत्री बना आपन किस्मत कूट रहल बा,
मुँह में राम बगल में छुरी के मंतर सबके रटवले बानी,
जानत बानी हम……….II
दू बिलार के लड़ाई में फायदा बनरे के होला,
लड़ाई धरम के हो या जात के नुकसान सगरे के होला,
अफ़सोस इहे बा कि अबकी बिलार कहीं नईखे,
बस एक बानर के मलाई खात दूसरा के सुहात नईखे,
जिन्दा रहे खातिर हमहूँ एगो बानर पटवले बानी,
जानत बानी हम……….ई
करोरन के फोन घोटाला में मचवले बा हाहाकार,
जनता के दरबार ठप करके देखवले बा आपन शाहाकार,
तकलीफ एकर नईखे कि नुकसान बिलार के बा,
लाख कोशिश के बादो नईखे भरत ओकर भंडार बा,
कलम के बहाना हमहू बस आग लगवले बानी,
जानत बानी हम……….II
अरसा बाद एक बार फिर कलम उठवले बानी,
जानत बानी हम आग से बारूद सटवले बानी II
Dear Kavi,
Apke kavita padh ke hamke bada neek lagal, sachahu, desh me etna bhrashtachar badhal jat ba ki ruke ke naam naikhe let. A Kavita ke jariye, logan me kuch the jagrati jagi jese u a bharashtachar ke roke khatir kuch to sochiye aur kadam uthaihe.
Sacho aag se barood satawle bani.
With best regards,
Rajesh
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