Category: भाषा

जेकरा खातिर चोरी कइनी उहे कहलसि चोर ! (बतकुच्चन – 188)

भन दे गन दऽ ना त दन दे हने लागब. तेजी के मापल जाव त ‘दन दे’ से तेज ‘भन दे’ होला. दन दे कहला क मतलब कि जल्दी से आ भन दे के मतलब ओकरो ले तेजी से. गन दऽ असल में गिन दऽ केउच्चारण दोस ह बाकिर गनल आ गिनल में...

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अगवढ़ आ अगवाह (बतकुच्चन – 187)

बतकुच्चन आ समाचारन में कवनो संबंध ना होखे बाकिर समाचारन से बतकुच्चन करे के मसाला मिलत रहेला. अब देखीं ना, फोने क के एगो नामी वकील अपना नामी आरोपी के जमानत दिआ दिहलें. ई नामी वकील जब सरकार में मंत्री रहलें तब ओह नामी आरोपी के...

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गोत आ गोतिया के चरचा (बतकुच्चन – 186)

बात धरमपत्नी से बढ़ के गोत्र आ कुल खानदान पर आ गइल बा. एगो गोत के लोग दोसरा गोत के उपद्रवियन के गोतिया का बता दिहल कि सामने वाला बात के ले उड़ल आ ओकरा के अपना जाति के अपमान बतावे लागल. थोड़ देर ला हमहू चकरा गइनी कि गोत्र भा गोत...

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धरमपत्नी त होला बाकिर धरमपति काहे ना होखे (बतकुच्चन – 185)

दिमाग में अगिला बतकुच्चन के ताना बानबुनत जात रहनी तबले रमचेलवा भेंटा गइल. देखते पूछलसि, ए बतकुचन, बतावऽ धरमपत्नी त होला बाकिर धरमपति काहे ना होखे. बूझ गइनी कि बाबा लस्टमानंद से कुछ सीख के आइल बा आ उनुके कहल बात पर हमरा के अजमावल...

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जनतब, अनचिन्हार आ परिचिताह (बतकुच्चन – 184)

जनतब, अनचिन्हार आ परिचिताह. तीनो के तीनो जान-पहचान से जुड़ल शब्द आ आजु के बतकुच्चन एकनिए पर. जनतब के जगहा हिन्दी में जंतव्य ना होखे आ हिन्दी के गंतव्य का जगहा भोजपुरी में गनतब ना भेंटाव. परिचित त हिन्दीओ में भेंटा जाई बाकिर...

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