Category: भाषा

बतकुच्चन १७

पिछला हफ्ता लस्टमानंद जी रामचेला से बतियावत में कह दिहले कि बतकुच्चन वाला ओम प्रकाश भाई से पूछल जाई कि “नाच ना जाने आँगन टेढ़” के सही मतलब का होला. जब से उनुकर लस्टम पस्टम पढ़ले बानी तबहिये से माथा घूम गइल बा. का जाने...

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बतकुच्चन – १६

समय त हमेशा बदलत रहेला. ना बदलल त ऊ समय कइसे कहल जाई. बाकिर जब कवनो बदलाव अचके में भा तेजी से हो जाव त आदमी इहे कहे लागेला कि समय बदल गइल बा. देखीं ना जिम्मेदार पद पर बइठल लोग अपना लाग-डाँट का चलते सामने वाला पर अछरंग लगा देत...

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बतकुच्चन – १५

पुरनका जमाना में रनिवासन में रानी लोग के खटवास-पटवास धरे खातिर एगो अलगे कक्ष भा भवन रहत रहे जवना के कोप भवन कहाव आ जहाँ रुसल आ रिसियाइल रानी लोग जा के खटवास धर लेत रहे. खबर मिलते राजा धावत चहुँप जासु अपना रानी के मनावे खातिर....

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बतकुच्चन – १४

जमाना औचक चहुँप के भौचक करे के चल रहल बा त सोचनी आजु एही चक पर कुछ बकचक कइल जाव. चक कहल जाला जमीन के कवनो बड़का खण्ड के आ एही से जमीन के छोट छोट टुकड़ा मिला के चक बनावल जाला त ओकरा के चकबन्दी कहल जाला. अब चकबन्दी के शाब्दिक अर्थ त...

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बतकुच्चन – १३

पहुँचा कहल जाला हाथ का हथेली के जोड़ वाली जगह, कलाई के भा मणिबन्ध के. आ पहूँची कहल जाला एगो खास तरह के गहना के जवन कलाई पर पहिरल जाला. भोजपुरी में एगो कहाउत ह पँहुचा पकड़त गरदन पकड़ लिहल. कुछ लोग पहिले त राउर सहारा लेबे खातिर राउर...

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