लोक कवि अब गाते नहीं – ४
(दयानंद पाण्डेय के लिखल आ प्रकाशित हिन्दी उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद) तिसरका कड़ी से आगे….. कहल जाला कि अर्जुन द्रोपदी के एहीसे जीत पवले कि उनुका बस मछरी के आँख लउकत रहे. जबकि बाकी योद्धा पूरा मछरी देखत रहले आ एह चलते मछरी...
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