जयकान्त सिंह के तीन गो कविता – नया आ पुरान
– डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’ जेठ भाई के निहोरा करऽ जन अनेत नेत, बबुआ सुधारऽ सुनऽ, तूँही ना ई कहऽ काहे होला रोजे रगड़ा । आपन कमालऽ खालऽ, एनहूँ बा उहे हालऽ आर ना डरेड़ फेर, काहे ला ई झगड़ा ।। चूल्हे नू बँटाला कहीं,...
Read More