गंगा प्रसाद अरुण के दू गो गजल
(1) छलकत तलफत नजर, त बरबस गजल भइल. लहसल लहकत दहर, त बरबस गजल भइल. अद बद पनघट पर जब परबत पसर गइल, सइ-सइ लहरल लहर, त बरबस गजल भइल. चटकल दरपन चमकल दहक-सहक बन-बन, समय गइल जब ठहर, त बरबस गजल भइल. अलकन पर, मद भरल नयन, मनहर तन पर,...
Read More