Category: कविता

अन्हरिये बनल रहीत

– अभयकृष्ण त्रिपाठी बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत करिया चेहरा दुनिया से दरकिनार रहीत. याद आवेला जब सारा जग उजियार रहे, सोन चिरईया के नाम जग में बरियार रहे, मुँह में मिश्री आँखिन में आदर भरमार रहे, स्वर्ग से...

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कुछु समसामयिक दोहा

– मुफलिस देई दोहाई देश के, ले के हरि के नाम. बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम. लूटे में सब तेज बा, कहाँ देश के ज्ञान नारा लागत बा इहे, भारत देश महान. दीन हीन दोषी बनी, समरथ के ना दोष. सजा मिली कमजोर के, बलशाली निर्दोष....

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अंधेर नगरी, चौपट राजा

– डा॰ सुभाष राय ई त सभे जानेला कि सूरुज उग्गी त सबेर होई इहो मालूम बा सबके कि चान राति क उगेला बहुते नीक लागेला फूल फुलाला त महकेला बाकिर ई केहू के ना पता कि महंगाई काहें बढ़ेले खून-पसीना बहा के भी किसान काहें सबकर मुंह...

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पलायन

– संतोष कुमार पटेल बाढ़, सुखाढ़ आ रोटी अजीब रिश्ता बा इनके जवन खरका देलख खरई खरई जिये के विश्वास साथे रहे के आस धकेल देलस दउरत रेल के डिब्बा में जहवां न बइठे क जगहे न साँस लेवे के साँस ऊँघत जागत दू दू रात के आँखिन में काटत...

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एगो मजदूर के दरद

– प्रभाकर पाण्डेय ‘गोपालपुरिया’ नून-तेल-भात कबो, कबो दलिपिठवा, कबो-कबो खाईं हम भुँजा अउरी मिठवा, कबो लिट्टी-चोखा त कबो रोटी-चटनी, कई-कई राति हम बिना खइले कटनी. कबो मिलि जाव एक मुठी सतुआ, कबो-कबो खिचड़ी खिया दे...

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