बतकुच्चन – ८०
ना अँवटब, ना पवढ़ब, ना दही जमाएब. दूधवे उठा के पी जाएब, एके ओरहन रही. बात सही बा. रोज रोज के तकरार, ओरहन, तंज से तंग आ के कवनो चाकर, कवनो सरकार, कवनो भतार एह तरह के फैसला कर सकेला. अब एह पर चँउके के कवनो जरूरत नइखे कि भतार शब्द...
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