बतकुच्चन – ७०
लस्टम पस्टम में दिहल ज्योति जी के सवाल पर कुछ कहे से पहिले एक बात साफ कर दिहल जरूरी लागत बा. हम ना त भाषा शास्त्री हईं ना भाषा वैज्ञानिक. हम त बस नाच के लबार हईं, सर्कस के जोकर हईं, रमी के पपलू हईं. शब्दन से खिलवाड़ करत बतकुच्चन...
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