सहकल, बहकल आ डहकल (बतकुच्चन – 182)
सहकल, बहकल आ डहकल के चरचा करे के मन करत बा आजु. काहे कि देश में कुछ लोग के अतना सहका दिहल गइल बा कि ऊ बहकल बन गइल बाड़े आ एह बात के कवनो चिन्ता नइखन करत कि उनकर बेवहार केहू के डहकावतो बा. सहके से सहकत, बहके से बहकत, आ डहके से...
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