Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन – ९

मैंने कहा. हमने कहा. तुमने कहा, उसने कहा, राम ने कहा. अरे भाई का कहा आ काहे कहा ? आ आजु आप हिन्दी काहे छाँटे लगनी ? सवाल जायज बा. हमरा ई सब कहला का पाछा के मकसद बा भोजपुरी के खास सुभाव का बारे में बतावे के. अगर इहे सब भोजपुरी...

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बतकुच्चन – ८

पिछला हफ्ता के तिकवत तिवई का बाद आजु सोचत बानी कि अकसर आ अकसरुआ के बाति कर लीं. अब अकसरुआ त उहे नू कहाई जे अकसर होखे. बाकिर अकसर त ओकरो के कहल जाला जवन आये दिन होत रहे, बार बार होत रहे. एगो दोसर अकसर ऊ होला से अपना अपना घर के...

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बतकुच्चन – ७

कुछ दिन पहिले एगो साहित्यकार बंधु के फोन आइल रहुवे. उहाँ के जानल चाहत रहीं कि तिवई के मतलब का होला. शब्द के अर्थ ओकरा व्यवहार का तरह बदलत रहेला. अगर अइसनका ना रहीत त आक्सफोर्ड डिक्शनरी हर बेर आपन नया संस्करण ना निकालित. हर कुछ...

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बतकुच्चन – ६

सोचत बानी कि लोग कहत होखी कि ई अनेरे अतना बतकुच्चन कइले रहेला. जरुरे अनेरिया आदमी होखी जेकरा लगे दोसर कवनो काम नइखे. बाकिर का बताई कि अनेरिया होखल नीमन, अनेरिया होखल ना. अब रउरा पूछब कि अनेरिया आ अनेरिया में का फरक होला ? उहे...

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बतकुच्चन – ५

“करे केहू भरे केहू”. पुरान कहावत हऽ अब एकर टटका उदाहरण सामने आइल बा. घोटाला करे वालन के त पता ना का होई बाकिर आम आदमी के मोबाइल पर बतियावल जरुरे महँग होखे जा रहल बा. “खेत खइलसि गदहा, मार खइलसि जोलहा” वाला...

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