Tag: पाती

बाजलि बैरनि रे बाँसुरिया

– गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’ पाकिस्तान के मारि के हमार सिपाही ओकर छक्का छोड़ा दिहलन सऽ. चीन क कुल्हि चल्हाँकी भुला गइल. मिठाई खाइब… हो… हो. ईहे हई नगरी, जहाँ बाड़ी बनरी, लइकन क धइ-धइ खींचेली टँगरी. एगो बीड़ी बाबू...

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भैरवी क साज

– ईश्वरचन्द्र सिन्हा सिंहवाहिनी देवी के सालाना सिंगार के समय माई के दरबार में जब चम्पा बाई अलाप लेके भैरवी सुरू कइलिन, त उहाँ बइठल लोगन क हाथ अनजाने में करेजा पै पहुँच गयल. रात भर गाना सुनत-सुनत जे झपकी लेवे सुरू कय देहले...

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पाती के “प्रेम-कथा विशेषांक” पर बतकही

अभाव आ गरीबी पहिलहूँ रहे. दुख-दलिद्दर अइसन कि रगरि के देंहि क चोंइटा छोड़ा देव. लोग आपुस में रोइ-गाइ के जिनिगी बिता लेव, बाकिर मन मइल ना होखे देव. हारल-थाकल जीव के प्रेमे सहारा रहे. धीरज आ बल रहे. आजु एतना तरक्की आ सुबिधा-साधन का...

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जेएनयू के भारतीय भाषा केन्द्र में भइल परिचर्चा आ काव्यपाठ

“‘पाती’ पत्रिका भोजपुरी रचनाशीलता के आंदोलन के क्रांति-पताका हऽ. ‘पाती’ माने, नयकी पीढ़ी के नाँवे सांस्कृतिक चिट्ठी. एगो चुपचाप चले वाला सांस्कृतिक आंदोलन हवे ‘पाती’, जवना के अशोक द्विवेदी अपना संसाधन से चुपचाप चला रहल...

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तनी हट-हटा के….(2)

– प्रगत द्विवेदी हमनी के भोजपुरिया लोगन में कम ‘क्रियेटिविटी’ नइखे. जोगाड़ पर काम चलावे आ लोके-लहावे के चलन हमनी क खासियत मनाला. हमनी में से कतने लोग बिना सुबिधा संसाधन आ बे साज-समान के अतना गजब का ऊँचाई प चहुँपल कि देखि के...

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