Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन – ५०

पिछला बेर बत्ती जरावे भा चालू करे भा रोशन करे के बाति निकलल रहुवे. आखिर ले कवनो राह ना लउकल कि बत्ती के का कइल जाव. एक हफ्ता ले सोचलो पर कवनो दोसर राह ना भेंटाइल. ले दे के इहे बुझात बा कि बत्ती अबही कुछेक साल ले जरबे करी काहे कि...

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बतकुच्चन – ४९

भाषा अपना समाज के दरसावेला, ओकरा माहौल के देखावेला. एही चलते अलग अलग जगहा के लोग अलग अलग भाषा बोलेला. कई बेर भा अधिकतर एक जगहा के भाषा दोसरा जगहा के आदमी ना बुझ पावे. एक भाषा में जवन शब्द खराब भा फूहड़ मानल जाला हो सकेला कि दोसरा...

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बतकुच्चन – ४८

एक त चोरी ओह पर से सीनाजोरी. पिछला दिने कुछ कुछ अइसने वाकया देखे के मिलल जब बरियार चोर सेन्हे पर बिरहा गावे लगले. आ पहरेदार बेचारा सीटी बजावल छोड़ कुछ ना कर सकत रहे. अब चोर का बारे में थोड़ देर बाद. पहिले सेन्ह का बारे में बतिया...

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बतकुच्चन – ४७

आजुकाल्हु चुनाव के मौसम बा आ बरसाती ढबुसा बेंग का तरह नेता उछल उछल के टरटरात बाड़े. सभे लागल बा एक दोसरा के भकठा बतावे, साबित करे में आ अपना के दूधे नहाइल बतावे में. अब सोचीं त भकठा के मतलब होला बिगड़ल, खराब. आ जे अइसन होला ओकरा...

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बतकुच्चन – ४६

पिछला बेर आखिर में पूरा पर पूरा कतार बन गइल रहे बाकिर चरचा ना चलल रहे. आजु ओहि पुर से पूर के सफर पर चलल जाव. पुर कहल जाला नगर भा शहर के बाकिर एकर इस्तेमाल कवनो शब्द का अन्त में प्रत्यय के रूप में बेसी होला, जइसे कि भागलपुर,...

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