Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन – ४५

पिछला बेर पोजिटिव थिंकिंग के बात सामने आइल रहुवे से आजु ओहिजे से शुरू करत बानी. पोजिटिव थिंकिंग, माने कि सकारात्मक सोच, माने कि सकारथ सोच ओह सोच के कहल जाला जवन आदमी के मनोरथ पूरा करे, ओकर ईच्छा पूरा करे भा ओकर सोचल सगरी काम...

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बतकुच्चन – ४४

शब्द का बहाने बतकुच्चन होला. आ शब्द एगो भा अधिका ध्वनियन के अइसन समूह ह जवना के कवनो मतलब निकलत होखो. मतलब नइखे निकलत त ऊ शब्द कहाइये ना सके. जइसे कि गिलगिलइला के शब्द ना कहल जा सके. अलग बाति बा कि एह काम के बतावे खातिर...

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बतकुच्चन – ४३

महुआ बीनत लछमिनिया के देखनी, हर जोतत महिपाल, टिकठी चढ़ल अमर के देखनी, सबले नीमन ठठपाल ! नाम कई बेर सार्थक ना हो पावे आ नामित आदमी भा संस्था भा चीझु नाम का हिसाब से ना चलि पावे. बाकिर एकर मतलब इहो ना होला कि नाम हमेशा गलते होखेला....

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बतकुच्चन – ४२

बतकुच्चन करत हमेशा याद रहेला कि बाते से आदमी पान खाला आ बाते से लात. अब बाति आ लात के अतना घन संबंध देखला का बावजूद बतकुच्चन के लति धरा गइल बा आ लति धरा जाव त फेर आदमी परिणाम के फिकिर छोड़ देला. हालांकि जरूरी नइखे कि लति हमेशा...

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बतकुच्चन – ४१

पिछला दिने खूब बतकही सुने के मिलल आ हम बतरस लेत रहनी. बाकिर बतकही का दौरान बाताबाती आ गलथेथीओ सुने के खूब मिलल. त सोचनी काहे ना आजु बाते पर बतकुच्चन कइल जाव. बतकुच्चन करे वाला जरूरी नइखे कि बतबनवो होखे. बतकुच्चन करे आ गलथेथी करे...

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