ओका -बोका 

– ओ.पी. अमृतांशु

Oka Boka

तोर नैना, मोर नैना, मिलके भईले चार.
चलऽ खेलल जाई, ओका-बोका नदिया किनार. 

नदिया के तीरे-तीरे, बहकि बेयरिया.
संघे-संघे उड़ी गोरी, तोहरो चुनरिया.
हियना के डाढ़े-पाते, झुमिहें बहार,
चलऽ खेलल जाई, ओका-बोका नदिया किनार. 

लाली-लाली होठवा से, रस बरिसइह.
हहरल हियरा के मोरा जुडवइह.
नेहिया के सोत फूटी, बही जाई धार.
चलऽ खेलल जाई, ओका-बोका नदिया किनार.

दिलवा के डोर से, पतंग उड़ी आई.  
हौले-हौले छुई के आकाशवा के आई.
छुई-मुई होई तोरी, सोरहो सिंगार.
चलऽ खेलल जाई, ओका-बोका नदिया किनार.

पान-फूल ढोंढीया, जब रे पचकि जाई. 
चुटा-चुटी होई, फेरु कानवा ममोरल जाई.
लाता-लुती करल जाई, नाहिं मानल जाई हार.
चलऽ खेलल जाई, ओका-बोका नदिया किनार.

6 Comments

  1. Ranjit Kairos

    बचपन के उ दिन याद आ गाइल,

    जब हमनी के ओका -बोका खूब खेलत रहनी जा!

    पारंपरिक खेल के नया रोमांटिक आ कलात्मक रूप अच्छा लागल !

    धन्यवाद !
    रंजीत कैरोस

  2. SAHIL

    Are waah o.p. ji kya baat hai.Bachpan yaad aagaya
    bahut sundar geet likha hai aapne.

  3. Manu

    I like the free flying style very much

  4. neha

    Very nice song o.p. sir..

  5. Chitsa Mehta

    भोजपुरी पारंपरिक खेल को नया रूप में लिखाकर इसे रोमांटिक बना दिया आपने .अच्छा लगा .”ओका -बोका” का नया साहित्य से लबालब रोमांटिक गीत !अमृतांशु जी धन्यवाद !
    चित्सा

  6. shaji

    ”ओका -बोका” अच्छा लगा

    Keep it up…

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