“घुंघरू बजा के”.

घुंघरू बजते ही हमारे आस-पास का पूरा माहौल संगीत की लय पर थिरक उठता है. लेकिन दीपक सावंत और अभिषेक चड्ढ़ा की फिल्म “गंगादेवी” में जब एक अपांग, तोतला और चुगलखोर शख्स किरदारों के आपसी संबंधों के बीच सेंध लगाने के लिए घुंघरू की झंकार छेड़ेगा, तो भोजपुरी फिल्मों में खलनायकी के सारे तार झुनझुना उठेंगे… “ता हुदूर धुंधरु बजा ते..” के तकिया कलाम के साथ इस फिल्म के सारे किरदारों को अपनी उँगलियों पर नचानेवाले अदाकार हैं-“गिरीश शर्मा”.. हालांकि इस फिल्म में दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’, पाखी हेगड़े, भरत शर्मा व्यास, और बॉलीवुड के बैडमैन गुलशन ग्रोवर जैसे धुरंधर मौजूद हैं. लेकिन खुद निर्देशक अभिषेक चड्ढ़ा की मानें तो ‘घुंघरूलाल’ उनके पसंदीदा किरदार हैं.. अब तक कई फिल्मों में अपनी खलनायकी के तेवर दिखा चुके गिरीश शर्मा इस फिल्म में अपनी ज़िन्दगी के सबसे यादगार रोल में नज़र आयेंगे. बकौल गिरीश शर्मा ‘घुंघरूलाल’ की खासियत ये है कि इसकी कॉमेडी में ही खलनायकी का धार मौजूद है. घुंघरू के चेहरे पर जब भी मुस्कराहट तैरती है तभी कहानी के पेंच उलझने लगते हैं. उसकी हंसी दूसरों के दिलों में खौफ पैदा कर देने की क्षमता रखती है.. यही इस किरदार की सबसे बड़ी खासियत है यानि ‘गंगादेवी’ भोजपुरी सिनेमा में खास चरित्रों की एक नयी परिभाषा गढ़ने को तैयार है – “घुंघरू बजा के”


(स्रोत – स्पेस क्रिएटिव मीडिया)

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