दया का नाम पर मौत देबे से सुप्रीम कोर्ट के इन्कार

एगो लेखिका पिंकी विरानी चाहत रहली कि पिछला ३७ साल से बेहोश पड़ल नर्स अरुणा शॉनबाग के जबरदस्ती जिन्दा मत राखल जाव आ उनुका के दया मृत्यु लेबे के अधिकार दिहल जाव. कोर्ट के कहना बा कि देश में अइसनका कवनो कानून नइखे जवना में अइसनका कवनो आदेश दिहल जा सके. सुप्रीम कोर्ट के न्यायमुर्ति मार्केण्डय काटजू आ न्यायमूर्ति ज्ञानसुधा मिश्रा से बनल दू जज के बेंच के फइसला रहल कि केहू के जहर देके मारे के आदेश ना दिहल जा सके बाकिर कुछ खास हालात में जीवनदायी उपकरण बन्द कर के मौत के आवे दिहल जा सकेला. बाकिर एह काम खातिर हाई कोर्ट से अनुमति लेबे के पड़ी जवन कि बहुते सोच विचार का बादे कवनो फैसला दी. कोर्ट इहो कहलस कि अबही कोर्ट के बनावल ई व्यवस्था तबले कानून के काम करी जबले संसद अइसनका कवनो कानून नइखे बना देत.

नर्स अरुणा के ओकरे अस्पताल के एगो सफाई कर्मचारी जबरदस्ती बलात्कार के शिकार बनवले रहे जवना खातिर सिंकड़ से नर्स के गरदन कस दिहले रहुवे. ओह सिंकड़ का चलते अरुणा के दिमाग के खून मिलल बन्द हो गइल रहे जवना चलते ऊ कोमा में चलि गइली. डाक्टरन आ नर्सन के लगातार देखभाल से अब ऊ कोमा के हालात से बाहर आ चुकल बाड़ी बाकिर उनुकर ठीक होखे के कवनो उमेद नइखे. कोर्ट के मिलल मेडिकल रिपोर्ट में बतावल गइल बा कि नर्स अरुणा कवनो जीवनदायी उपकरण का सहारे नइखी आ उनुकर हालात स्थिर बा. अइसन हालत में कोर्ट उनकरा के दयामृत्यु भा चाहलमौत के विकल्प देबे के तइयार ना भइल.

कोर्ट के फैसला के मेडिकल जगत स्वागत कइले बा खास कर के ओह अस्पताल के नर्स आ डाक्टर जे मिठाई बाँट के कोर्ट के फैसला पर खुशी जतवले.

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