Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन – ५६

भाषा भोजपुरी से हमार परिचय नौ बरीस से बा. एह बीच बहुते तरह के लोग से भेंट भइल. कुछ ओह लोग से जे भोजपुरी में आपन धंधा करत बा त कुछ ओहू लोग से जे भोजपुरिए के आपन धंधा बना लिहले बा. सोचीं त दुनु में कवनो खास अंतर ना बुझाई बाकिर गौर...

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बतकुच्चन – ५५

हमरा लागत बा कि जवन हो रहल बा से ना होखे के चाहत रहुवे, जवन कहल सुनल जात बा से ना कहल सुनल चाहत रहुवे. काहें कि एह सबसे दुश्मन के सेतींहे हमनी के कमजोरी भेंटा जात बा. सेंत मेंत में हमनी का आपन कमजोरी दुनिया के देखवले बतवले जात...

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बतकुच्चन – ५४

हालही में एगो कविता के कुछ लाइन पढ़े के मिलल “मटिया क गगरी पिरितिया क उझुकुन / जोगवत जिनिगी ओराइ / सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा / छतिया के अगिया धुँआइ”. पढ़ला का बाद अपना बतकुचनिया सुभाव का चलते मन उचके लागल, सोचे लागल...

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बतकुच्चन – ५३

एगो कहाउत ह “राड़, साँढ़, सीढ़ी, सन्यासी | एहसे बचे त सेवे काशी”. कहाउत कहल त गइल बा काशी का बारे में जहाँ के राड़, ठग, सीढ़ी आ साधु सबही एकसे बढ़िके एक होलें. बतकु्च्चन में राड़ आ राँड़ के फरक के चरचा पहिले हो चुकल बा. एह...

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बतकुच्चन – ५१

फगुआ बीतल चइत आ गइल. फगुआ का दिने निकलल होरिहारन के टोली भर दिन फगुआ गवला का बाद चइता गा के नयका साल के स्वागत कइलन. फगुआ आ चइता दुनु के शुरुआत हमेशा देवी वन्दना से होला. सुमिरिले मतवा, जोड़ीले दुनु हथवा हो रामा/ कण्ठे सुरवा/...

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