आवऽ लवटि चलीं जा!

डा॰ अशोक द्विवेदी के लिखल उपन्यास अँजोरिया में धारावाहिक रुप से प्रकाशित.
(आखिरी कड़ी)
पिछला आ चउदहवाँ कड़ी

अगर पहिले नइखीं पढ़ले त शुरु से पढ़ीं

चउधुर के कवनो छोट लइका भागल भागल बता आइल जे रमेसर बाबा का कपार फाटि गइल. केंवाड़ी पर ईंटा चलऽता . लोग ढकचावत बा बाकिर ऊ टूटत नइखे. लोग कहऽता जे बूढ़वा रतिए खां आन गाँव से दू-तीन गो नवहन के बोला लेले रहल हा. भितरी से खूब ढेलांउज करत बाड़े स. बच्चन भइया के घाव लागल बा. चचो घवाहिल बाड़न. अब पुलिस आइले बोलऽतिया.

चउधुर के परान मुँहे आ गइल. गोड़ के दरद गायब हो के आँखि के जोति बन गइल. झटका से सोंटा उठवले आ बछरु का पाछा खूँटा तूरा के भागल गाइ लेखा रँभात, गली में धवरि गइले – आ गइलीं रे पनवा ! अइलीं रमेसर, अइलीं ! घबड़इहऽ जिन, हम बानी तहरा ओर !

रमेसर राउत के दुआरे चहुँपल चउधुरी उहाँ के नजारा देखि के संठ हो गइले. बहरी से जतना ढेला भीतर फेंकात रहे, भितरी से ओतने बहरी फेंकात रहे. बुझाव जे बलुआ का भीतर एगो अउरी बलुआ बा जवन अँगनई से रक्षात्मक लड़ाई लड़ि रहल बा.

ढेलाबाजी के बीचे से देंहि बचावत ऊ सनाक से दुआरी ले चहुँपि गइले आ जा के दरवाजा छोपि लिहले.

  • बन्न करऽ लोग. हम कहऽतानी, बन करऽ जा ई तमासा. ऊ पूरा जोर लगा के चिचिअइले.

सगरे एगो तितिछाह चुप्पी पसरि गइल. हवा में उठल हाथ हवे में रुकि गइल. चउधरी के बुझाइल जे ई चुप्पी अन्दर के संबेदनहीनता आ क्षुदुरपन के नकली आवरन ह. जिनिगी का सहज सोझ डहर में काँट-कूट ईहे बोवेले.

हम कहऽतानी जे पनवा हमार लइकी हऽ. अछरंग लागल ओकरा माथे, बदनाम भइनी हम. हितई छूटल हमार, दोसरा के का मतलब ? हम ओके मारबि, गरियाइब भा काटि के दरिआव में बीग देब, जवन मन में आई करबि, तोहल लोग के एसे का लेबे-देबे के बा ?

  • काहे नइखे लेबे के ? भीड़ के खुमारी चढ़त देखि के बहोरन घघोटले, एगो त गाँव के ईजति गइल दोसरे अइसन कुकरम पर पीठियो ठोकल जाव का ? बाह रे चउधरी ! गाँव से बहरी रहेलऽ का ?
  • ढेरि चटक मति बनऽ ए बाबाजी ! तोहरे जइसन मनस्पापी सगरे बभनईया के गारी सुनवावता. अपने ना देखऽ …. मुँह जनि खोलवावऽ. जे प्रीति करे से मरद आ जे चित्त देइ से मेहरारु ! कूल्हि से बड़ निबाहल ह. आ एमे कुकरम कइसन हो ? का ऊ कुकुर सियार हउवन स ?

बहोरन तिवारी के मुँह लटकि गइल. सभ जानऽता जे ऊ मुसमात भवहि अँवसले बाड़े. पंचमुखी रुद्राक्ष के गुरिया आ चंदनी सुगंध से दबाइल उनुका कोन्हियाइल बास से तुलसी का पतई ले पियरा गइल.

  • एकर माने कि तूँहू पनवा के आ बिरवा के करतूत के जायज कहऽतारऽ ?
  • प्रेम नजायज कब कहाइल बा ? बरियारा के मुँह जवन कहे तवन कानून ह ?

  • बलेसर बहुत देरि से कुछ बोलल चाहत रहले बाकिर बहोरन तिवारी के हात देखि के पटा गइले. सोचले, कहीं हमरो से मत उघटापुरान करे लागो. जेठकी पतोहि के करतूत केहू से छिपल बा. मरद ओकर पगलेटे हऽ. लाला मस्टरवा के उनुका घरे आवाजाही केहू से छीपल बा. दसन बरीस हो गइल. पतोहियो मिलल त मुंहे करिखी पोते वाली. ओकरे पाछा हम कई बेर बेइज्जत भइलीं. बलेसर के मन अस खटाह भइल जे ऊ धीरे से भीड़ से बहरियाइ गइले.

    भीड़ ओहि तरे खदकत रहे. कुछ देर बाद बचना बोलल, ठीके बा. चउधरे जब चाहत बाड़न त हमहन के का बइरकंठी झारे के बा?

    • बाकिर हमरा त झारहीं के ना, फटकहूं के बा. ढेमना गरई अस छटकल – सँभारस चउधुर आज से आपन भेभन. पेन्हावसु सिकड़ी पनवा के. आजु से दाना-पानी बन्न. की त बीरवे रही की त हम. नाहीं त सबुर क लेबे के कि हमहन के काका मरि गइले.

    ठठाई के हँसलन चउधरी – अइसन ? चलु बाचा, इहे सही.

    बुझाइल जे एक बेर फेरु भीड़ के उफान पटा गइल. बहोरन ढेमना के एक ओरि ले जा के का जानी का बतियावे लगले.

    • ठीक बा ए चउधर ! चलि जाइब जा ! बाकी अइसे ना, अब्बे पंचाइत बइठी आ अब्बे फैसला होई ! अइसन अनेति पचावल कठिन बा. जम के छुवला के ना, परिकले के डर ह. तुहऊँ नीक नइखऽ करत !

    फेरु चउधुर बेफिकिर, मुस्कियाइ के रहि गइलन. भीड़ के मनसा से इ साफ पता चलत रहे कि ऊ दोबिधा में परि गइल बिया. ओके भेड़ि अइसन हाँकत बहोरन चिल्हिकले – चलीं सभे. पंचइते बइठे. रमेसरो ना बँचीहें. जौले घर जराइ के छार ना क दियाई तौले गँवइ कलंक ना मेटी.

    चउधुर फेरु टँठाहे मुस्कियइले, हम तोहार पंचाइत मानी तब न ? तूँ हउवऽ के ? अपने पंचाइत ना फरियावऽ पहिले.

    सरेहि में फुलाइल सरसो पर गदराइल मटर ओलरि गइल. कतहीं फेंड़ रा डेंहुगी पर एगो नया पल्लो आँखि खोललसि – लाल, लाल ! तले सरजू मिसिर का शिवाला पर शंख बाजल – पुप… पुप्…पुप्…पों ऽ ऽ ऽ.

    एक-ब-एक रमेसर के केंवाड़ी खुललि… भड़ाक ! दूनों पट दू ओरि … आ जइसे सबका पंचाग्निहीम के धुआँ लागल होखे, सभ आँखि मिचमिचावत देखल. पहिले सुनैनी, ओकरा पाछा ओकर अलम लिहले पनवा, ओकरा पाछा मलिकाइन, फेरु कोरा में लरिका लिहले रमेसर के बड़की पतोहि, फेरु दीया लेले छोटकी ….. कूल्हि मेहरारु गोलाई में पनवा के तोपि लगहली सँ.

    खुनियाइल रमेसर के जइसे जवानी लवटि आइल होखे, हरिना अस चउकड़ी भरत सुनैनी का लगे पहुँचि गइले. भीड़ के जइसे काठ मार दिहलस, सभे ई अद्भुत लीला देखि के भकुवा गइल.

    का पंचाइत करबऽ ए बहोरन ? – रमेसर पतोहि का कोराँ से लुग्गा लपेटल लड़िका कोराँ में लात कहलन – पंचाइत त भगवाने क दिहलन. मेटऽ एकर रेखि, हूब बा तऽ ! पनवा अब महतारी हो गइल, सोहागिन महतारी. चउधरि अब नाना बनि गइलन.

    पनवाँ के आँखि से गंगा-जमुनी फूटि परली. ऊ गोलाई से बहरियात रमेसर के गोड़ छू लिहलस. चउधुर धवरि के ओकरा लग्गे चहुँपि गइले. पनवा लट छितरवले, हहास बान्हत बढ़ल आ हुँकुँरत उनका कोरा में लुका गइल. आखिर चउधुर ओकर बापे ना, छोटे पर से महतारियो रहले. चउधुर के आँखि बढ़िया गइल. ऊ आनंद का आखिरी छोर प खड़ा काँपत कहले – धनि हो, धनि हो रमेसर ! तूं हमरा अस लुटाइल भिखारी के मालामाल कई दिहलऽ ! अब का नइखे हमरा ? बेटा, दमाद, नाती, परिवार ..?

    भीड़ के थथमा लागि गइल रहे. लागे जइसे, कवनो मन्तर से ओकर मय हियाव बान्हि दीहल गइल होखे. बचना, बहोरन, चउधुर के भतीजा ढेमन आ सगरो फेतुरत पसारे वाला लोग फाटल आँखि से, देखत रहि गइल. सबकर मुँह बन्न. किरपा बो चमाइन गठरी लिहले बहरी निकलत रहे.

    चउधुर ओके देखि के चिचियइले, ए किरिपा बो, तूँ आपन कूल्हि नेग जोरि के हमरा से ले जइहऽ.

    अन्हेरिन के अनेति टूक टूक होइ के जेहर-तेहर छितिरा गइल. सुरुजदेव बीरा आ पनवाँ के सन्तान असीसे खातिर अउरी नीचे लरकि आइल रहले.

    (समाप्त)

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