ह का जिन्दगी

– डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’

JaiKantSighJai

लोर ढारत निहारत रहे राह जे,
ओह अँखियन से पूछीं ह का जिन्दगी।
पाके आहट जे दउड़ल दरद दाब के,
ओह दिल से ई पूछीं ह का जिन्दगी।।

पीड़ पिघले परनवा के जब जब पिया
हिया हहरे मिलन लागी तड़पे जिया
सुहाग बनके जे मँगिया सजावत रहल
ओह सेनुरा से पूछीं ह का जिन्दगी ।।

रात पूनम के कहिया ई कटले कटल
नेह ढरकत रहल ना ई पपनी सटल
केतना सज के जे सेजिया प मुरझा गइल
ओह कलियन से पूछीं ह का जिन्दगी।।

लागे सावन कटावन ई रउवे बदे
बात निमनो कहूके जिया का सधे
आस में आज ले जे सजल आ सुखल
ओह गजरा से पूछीं ह का जिन्दगी।।

साँस साँस में सुधिया समाइल सजन
कहके अइनीं ना संसा टँगाइल सजन
चोट पर चोट खाके जे अबले अड़ल
ओह असरा से पूछीं ह का जिन्दगी।।

रहे दूलम बिसारल ई छनभर छवि
कहीं कइसे कहल बा कठिन’ जयकवि’
दिल ई देखे दरद जे जोगावत रहल
ओह उमिरिया से पूछीं ह का जिन्दगी।।

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