बकसऽ ए बिलार मुरगा बाँड़ हो के रहीहें. (बतकुच्चन 160)
बकसऽ ए बिलार मुरगा बाँड़ हो के रहीहें. रउरा सभे सोचत होखब कि ई हर हफ्ते का आ जालें बक बक करे. आ हम सोचीले कि ल फेर कपारे आ गइल बतकुच्चन करे के दिन. गनीमत एतने बा कि बहुत कमे जगहा घेरे के पड़ेला. जइसे नाच का बीच बीच में आवे वाला...
Read More