Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन ‍ – ८३

केकर केकर लीहीं नाम, कमरी ओढ़ले सगरी गाँव. अब रउरा कहब कि हम का हँसुआ का बिआह में खुरपी के गीत उठा दिहनी. परब तेहवार का समय में ई करिखा आ कजरी वाला मुद्दा उठा के मूड बिगाड़त बानी. जी हमहु जानत बानी कि आजु काल्हु भईंसासुर मर्दिनी...

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बतकुच्चन ‍ – ८२

“छोड़ु छोड़ु मखिया रे आजु के रतिया / हिया भरि देखुँ दमाद अलबेलवा रे.” बाकिर सासू करसु त का? “सासु के अँखिया लगल मधुमखिया रे/ देखहू ना पवली दमाद अलबेलवा रे.” आ दमाद के खासियत अइसन कि ना देखवले बने, ना...

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बतकुच्चन ‍ – ८१

जवना दुखे अलगा भइनी तवने मिलल बखरा. कुछ लोग एह कहाउत के दोसरो तरह कहेला कि सास दुखे अलगा भइनी ननद मिलली बखरा. बात एके ह. कवनो जरूरी नइखे कि अलगा भइला का बाद बखेड़ा खतम हो जाउ, एक दोसरा के बखोरल खतम कर देव लोग. अब अन्ना से अरविंद...

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बतकुच्चन – ८०

ना अँवटब, ना पवढ़ब, ना दही जमाएब. दूधवे उठा के पी जाएब, एके ओरहन रही. बात सही बा. रोज रोज के तकरार, ओरहन, तंज से तंग आ के कवनो चाकर, कवनो सरकार, कवनो भतार एह तरह के फैसला कर सकेला. अब एह पर चँउके के कवनो जरूरत नइखे कि भतार शब्द...

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बतकुच्चन ‍ – ७९

चोट त चोट ह आ कचोट? कचोट के कम चोट समुझे वाला के बुड़बके बुझे के पड़ी. काहे कि कचोट झलके ना भितरे भितर चोट मारत रहेला. देह के चोट त देर सबेर भुलाइओ सकेला आदमी बाकिर मन के चोट, कचोट, भुलावल बहुते मुश्किल होला. आजु जब लिखे बइठल बानी...

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