Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन ‍ – ७३

गोल के बात का निकलल पिछला बेर कि माथा गोल हो गइल. मन में तरह तरह के सोच आपन आपन गोलबन्दी करे लागल. एह में गोलियात तीन गो शब्द सामने आइल गोल, गोला आ गोली. गोल कवनो समूह के कहल जाला. ई गोल खिलाड़ियन के होखे, होरिहारन के होखे, कवनो...

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बतकुच्चन ‍ – ७२

रोए के रहनी तले अँखिए खोदा गइल. लिखब त उहे जवन लिखे के रहल. बाकिर बज्जर पड़ो एह ग्रिड पर जवना चलते पिछला दिने आधा हिन्दुस्तान अन्हार हो गइल रहुवे. पावर ग्रिड के कहना बा कि राज्यन का ग्रीड का चलते ग्रिड फेल कर गइल. जबकि राज्य एह...

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बतकुच्चन ‍ – ७१

सास दुखे अलगा भइनी ननद पड़ली बखरा. समय का साथे बहुत कुछ बदल जाला आ कुछ ना बदले. पहिले परिवार में संयुक्त परिवार होखत रहवे जवन टूट के एकल परिवार होत गइल आ अब हालत अतना खराब बा कि दू बेकत के परिवारो में खटपट होखत रहत बा. पहिले बड़का...

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बतकुच्चन – ७०

लस्टम पस्टम में दिहल ज्योति जी के सवाल पर कुछ कहे से पहिले एक बात साफ कर दिहल जरूरी लागत बा. हम ना त भाषा शास्त्री हईं ना भाषा वैज्ञानिक. हम त बस नाच के लबार हईं, सर्कस के जोकर हईं, रमी के पपलू हईं. शब्दन से खिलवाड़ करत बतकुच्चन...

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बतकुच्चन – ६९

पीर से पीर कि पीर के पीर कि पीरे पीर बना देले आ तब पीर खातिर पीर सहाउर हो जाले? अब एह पीर के रीत से पिरितिया बनल कि पिरितिया में पीर के रीत बन गइल बा? संस्कृत के प्रीत बिगड़त बिगड़त कब पिरित हो गइल आ एह पिरितिया के संबंध पीर से...

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