Tag: बतकुच्चन

झड़ुआवल आ बहारल के चरचा (बतकुच्चन – 175)

पिछला अतवार के बाबा लस्टमानंद से भेंट हो गइल. बाबा के आदेश भइल कि हम बतकुच्चन में झाड़ू पर चरचा करीं. बाबा के त ना बतवनी बाकिर रउरा के बता देत बानी कि पिछला साल अगस्त में एगो कड़ी में एकर चरचा कइले रहीं. आजु ओकरे में कुछ बात...

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टकरइत का होला? (बतकुच्चन – 174)

टिकैत त सभे सुनले होई, कुछ लोग टकैतो का बारे में सुनले होखी, बाकिर ई एकदम तय बा कि टकरइत भा टकरैत शायदे केहू सुनले होई. टिकैत का बारे में अधिका लोग इहे जानत होखी कि ई कवनो खास जाति के उपनाम ह. बाकिर असल में ई जाति के उपनाम ना हो...

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बखरा बखोरल (बतकुच्चन 173)

आजु बतकुच्चन लिखे बइठल बानी त खबर में बाँट-बखरा के चरचा गरम बा आ हम सोचत बानी कि बाँट-बखरा कि बाट-बखरा. बखरा के चरचा का पहिले बाट आ बाँट के चरचा क लिहल जरूरी लागत बा. बखरा कई तरह से हो सकेला आ बाँट के आ बाट से तउल के ओही में से...

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पढ़ीह लिखीह कवनो भासा, बतियइह भोजपुरी में (बतकुच्चन 172)

अंगरेजी में ए, हिंदी में ए, ऐ, न आ व, बाकिर भोजपुरी में आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, क, त, द, ध, न, प, ल, स आ ह. बात वर्णमाला के नइखे होखत. बात होखत बा शब्दन के. व्याकरण में पढ़ावल जाला कि ध्वनि से अक्षर बनेला, अक्षर से शब्द, शब्द से...

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जो सहाय रघुबीर (बतकुच्चन 171)

ना नीमन काम करे ना दरबारे ध के जाव! बतकुच्चन लिखे बइठल रहीं त इहे कहाउत ध्यान में रहल. लिखे के कुछ अउर रहल बाकिर मन में कुछ दोसरे सवाल उठे लागल. अधिकतर कहाउत का पीछे कवनो ना कवनो कहानी रहल बा. आ ओह कहानी के शीर्षक भा मथैला बाद...

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