Tag: बतकुच्चन

माई बाबूजी जब मम्मी आ डैडी हो गइले (बतकुच्चन 170)

माई बाबूजी कब मम्मी डैडी हो गइल लोग केहू के पता ना लागल. बाकिर आजु टीचर के गुरू कहला पर बखेड़ा खड़ा करे के कोशिश हो रहल बा. एहसे कि ई उलटा चाल बा. कहल जाला कि आदमी के भाषा में ओकर संस्कृति लउकेला, संस्कार झलकेला. एहसे जब कवनो...

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गोलबंदी, गठबन्हन आ कि गिरोहबन्दी (बतकुच्चन 169)

लागत ब कि मउराइल लोग फेरु मउराइल हो गइल बा. जान में जान आ गइल बा. कहल जात बा कि दहाड़त शेर प काबू पा लिहले बाड़े जंगल के सियार लोमड़ी आ मूस. बस अब तनिका जोर लगावे के बा आ शेर के बाहर क दिहल जाई. आ हम सोचत बानी कि एह गठजोड़ के का...

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शायद पालिटिक्स अब कुछ बदल गइल बा (बतकुच्चन 168)

बात कहिले खर्रा, गोली लागे चाहे छर्रा. कहे सुने ला त ई ठीक लागी बाकिर बेवहार मे आदमी सोच समुझ के बोलेला. साँच बोलल जरूरी होखेला बाकिर जहाँ ले हो सके अप्रिय भा कड़वा साँच से बचे के चाहीं. एगो अउर मुहावरा आएदिन इस्तेमाल होखेला आ उ...

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रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून (बतकुच्चन 167)

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून. पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून. पानी के महत्ता हमनी सभ के मालूम बा. जाने वाला लोग बतावेला कि तिसरका विश्वयुद्ध पानिए खातिर होखी काहे कि पानी घटल जात बा, लोग बढ़ल जात बा. पानी पर मुहावरो बहुते...

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परुआ बैल के हेहव के आसा (बतकुच्चन 166)

परुआ बैल के हेहव के आसा एह पर तनी रुक के चरचा होखी कि परुआ कि पड़ुआ. अबहीं मान के चलल जाव कि परुआ बैल ओह बैल के कहल जाला जवन काम का बेरा थउस के बइठ जाव. ओकरा बस बहाना खोजे के रहेला बइठे के. आ परुआ खाली बैले ना होले सँ आदमियो में...

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