Category: भाषा

बतकुच्चन – ५४

हालही में एगो कविता के कुछ लाइन पढ़े के मिलल “मटिया क गगरी पिरितिया क उझुकुन / जोगवत जिनिगी ओराइ / सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा / छतिया के अगिया धुँआइ”. पढ़ला का बाद अपना बतकुचनिया सुभाव का चलते मन उचके लागल, सोचे लागल...

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बतकुच्चन – ५३

एगो कहाउत ह “राड़, साँढ़, सीढ़ी, सन्यासी | एहसे बचे त सेवे काशी”. कहाउत कहल त गइल बा काशी का बारे में जहाँ के राड़, ठग, सीढ़ी आ साधु सबही एकसे बढ़िके एक होलें. बतकु्च्चन में राड़ आ राँड़ के फरक के चरचा पहिले हो चुकल बा. एह...

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साल २०२५ में कहल जाई : एगो लोक भाषा होखत रहुवे

बाजार के दबाव में तिल-तिल कर के मरत भोजपुरी भाषा के दुर्दशा लेके हम कुछ समय पहिले एगो उपन्यास लिखले रहीं “लोक कवि अब गाते नहीं.” इंडिया टुडे में एकर समीक्षा लिखत मशहूर भाषाविद् अरविंद कुमार तारीफ के पुल बान्हत एगो...

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बतकुच्चन – ५२

पिछला दिने भइल चुनाव परिणाम अवते यूपी में जीते वाला दल के समर्थक बवाल, खुराफात कइल शुरू कर दिहले. आलोचना होखे लागल त ओह लोग के नेता कहलन कि ई सब उनुका पार्टीवालन के खुराफात ना ह, ई त हारल पार्टी के खुरचाल के नतीजा ह. हँ हँ मानत...

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बतकुच्चन – ५१

फगुआ बीतल चइत आ गइल. फगुआ का दिने निकलल होरिहारन के टोली भर दिन फगुआ गवला का बाद चइता गा के नयका साल के स्वागत कइलन. फगुआ आ चइता दुनु के शुरुआत हमेशा देवी वन्दना से होला. सुमिरिले मतवा, जोड़ीले दुनु हथवा हो रामा/ कण्ठे सुरवा/...

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