– जयंती पांडेय
भोजपुरी सिनेमा बनावे वाले लोगन पर भोजपुरी के बिगाड़े के इलजाम बड़ा तगड़े लागेला. सचहूं भोजपुरिया सिनेमा में पता ना कहवां- कहवां के ड्रेस पहिना दिहल जाला अउर गजबे भाषा में कलाकार बतियावेला लोग. भोजपुरी के मिठास उ सिनेमन में कभियो न मिले, जबकि भोजपुरी में अभियो कविजी लोग तमाम रस में रचना कर रहल बाड़ें.
अब आशुतोष रंजन के बात सुनीं सबे. उ कहऽताड़ें .. ‘फगुवा में, हगुवा के मुड़ी जियान काहे करत बानी?/ सोची कम/ करीं जियादा, सोच सोच के बिहान काहे करत बानी?/ माया के माया में भुलक्ष्ला से कहीं राम मिलिहें? / बबूल के पेड़ बोअला से कहीं आम मिलिहें? / दोसरा के भाषा में समुझाइब जब, रउवा के बोले के आपन भाषा / रउरो मोहा जाइब देख के हमार चासा बासा / खाली राम राम कहला से का भगवान मिलिहें? / ऊंच मंच पर बइठला से का केहू बड़ हो जाला / पेड़ पर चढ़ी के वानर का शेर हो जाला?/ खाली समस्या गिनवऽला से का समस्या दूर हो जाला?/ बिना दियरी जरवले का अन्हरिया दूर हो जाला?/ कबो छोट रउवो होखऽब / खाली बड़ बड़ कही के केहू बड़ हो जाला? / हर चीज के आपन फायदा से जोखब / खाली धन कमइला से आदमी धन हो जाला?/ माफ करब भाई, जे हमार बोली लागल होई तींत / मीत से ही कड़ू बोल पावेला, कहेला लोग इहे ह प्रीत के रीत.’
बृजभूषण चौबे कहेलन. ‘धंधा होई मंदा तऽ/ का केहू करी / करजा लिहें माई- बाबू/ बेटा-बेटी भरबे करी / केहू खाला सुखल-पाकल / केहू खाला हरियरी / केहू बिछावे तोसक-तकिया / केहू बिछावे दरी / केहू बन्हाला खूंटा पर / केहू छूटा होके चरी/ केहु के हाथ मे भटकोइयां आवे / केहू पावे खुशबरी / केहू जरावे मटीही ढिबरी / केहू बारे मरकरी / केहू लगावे चुक्बुकिया बत्ती / भक-भक बरी/ बोयेब जब नीम तऽ/ आम नाहीं फरी / काम करऽब बढ़िया / लोग देखी देखी जरी/ केहू लगा के लाई सबसे / काना- फूसी करी/ दोष रही केकर / जाने केकरा पर परी/ केहू के घर में अनाज नइखे / केहू के घर में सड़ी / केहू खइला बिना मरे / आ केहू खूब खा के मरी/ हम हईं बड़का बाबू / केहू का हमार करी / जवन मन आई तवन करऽब / कबो कवनो घरी / केहू के मिलेले मोट कनिया / केहू के गोरकी छरहरी/ केहू रह जाला गांवेवाला/ केहू बन जाला शहरी / केकरा से रार बेसाही / केकरा से मार करीं / तेलिया पेरलस तेल / मोए राखी / लेहलस खरी / बाबूजी के माथा लहकल / देहलन लतहरी/ आज के दिन हमरा / जिनगी भर मन परी.
सुनील कुमार पाठक अपना सिवान जिले पर मोहित बाड़ें. उन कर कहनाम बा. ’सुंदर सिवान जिला बाटे ई बिहरवा में/ नाम चहूं दिशी में सुनाला मोरे भइया / एकर सुवास आ विकास के सुभग गति / निरखी नयनवा जुड़ाला मोरे भइया.’
बेतिया के कवि डॉ गोरख मस्ताना तऽ भोजपुरी के आगे केहू के कुछू ना बूझेलन.. ‘भाषा भोजपुरी ला अर्पित उमिरिया / पूरुबिया हई ना / हम हई भोजपुरिया, पुरुबिया हईं ना.’
वयोवृद्ध कवि अक्षयवर दीक्षित भोजपुरी में कहेलन – ‘जब अपने आपन ना होई / तऽ दोसर आपन का होई / जब दोसरो आपन बन जाई/ त अपने आपन ना होई.’
पांडेय रामेश्वरी प्रसाद कहेलन. ‘हमरा साँझ नीक लागे / रउवा भोर ठीक लागे / एगो रास्ता निकालीं जा / कि दिन कट जाव.’
कवि डा जितेंद्र वर्मा के कहनाम हऽ. ‘जेहि पर सगरी जिनिगिया नेछावर भइल / ओकरे गउँवा में दर दर हो गइल.’
भोजपुरी अकादमी बिहार के अध्यक्ष प्रो रविकांत दुबे कहेलन. ‘एगो आँधी उठित, तूफान चलित / आग पानी में लगावल जाइत / हर तरफ सघन अन्हरिया बाटे / जोति जागरन के जरावल जाइत.’
कैलाश मिश्र ‘अकेला’ अपना नामे लेखान कहेलन.. ‘जिनगी तूं ही कह, तोहरा ठेकान कवन बा./ तोहरा कवन आजु, काल्हि, सांझि बिहान कवन बा॥ / कब तूं हंसइबू, कब तूं रोअइबू / कबले तूं साथ देबू, कब छोड़ी जइबू / कहां ले पहुंचइबू, निशान कवन बा – जिनगी तूं ही कह../ कहेला लोग- अबहिन करऽब कमाई / धरम-करम के लेबें, बुढ़ापा जब आई/ दूनो एक्के साथ कइले में नोकसान कवन बा. जिनगी तूं ही कह../ बड़े-बड़े लोग धोखा गइले तोहसे / अइसन ठोकर दे लू, बोली निकरे न मुंह से/ हमरा कवन औकाति, आ गुमान कवन बा / जिनगी तूं ही कह../ तोहरा भरोसा करीं, समय गंवाई/ अंत में अकेला पछतात चलि जाई/ ए से बड़हन मूरखता के पहिचान कवन बा. जिनगी तूं ही कह…’ साचहूं भोजपुरी के मिठास लेखान अउर मजा कहीं नइखे. – ज्योति
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
भोजपुरी सिनेमा हिन्दी सिनेमा के जब कनल बन गइल होखे तब ओमें भोजपुरी आ भोजपुरी लोग लउकी कहाँ से ?
इ जवन बड बड नाम लिखल बा बगली में इ प्ईसा कमाए वाले बाटन कुल्ही , भोजपुरी के नास करे क जिम्मेदारी इहनी के बा, साला कुल्ही दिल्ली वालन से बोज्पुरी बोलवईहन त उ का बोलीहन सब , भोजपुरी क असली सत्रु समने बाडन, लालीच में रउरो सभे पूजी आ जदी मर्द होखी त बिरोध करी…. परचार त मति करी ए चोरन क .