– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
आजु निकहे
बिखियाइल बानी माई
बचवन पर
नरियात नरियात
लयिकवो मुरझा गईलें
आँखिन के लोर थम्हात नइखे
फेरु अझुराइल
नोचब बकोटब
खिलखिलात, हंसत, मुस्कियात
केतना रंग , केतना रूप .
झुंझलात, अकबकात कुछो
अभियो थम्हल नइखे गुरमुसाइल
बोल गइनी माई
जहवाँ जात बा
आपन लौछार देखा देत बा
कुछो फेकत , कुछो तुरत
कबो नटखटपने में मुस्कियात
कबों भागत परात , लुकात
बोलत, बोलावत
बेर बेर रिगावत सभे .
फेरु हेरे लगलीं बचवन के
बिलखे लगलीं अनासे
इ सनेह दुलार
अंचरा में लुकाइल खोजत
कुल्ही लइकन के सुभाव होला
मारल फेरु दुलारल, बेर बेर पुचकारल
ओही में आपन जिनगी के
आदि अंत हेरत महतारी
सुआरथ से फरके
अपनही में रीझल रहेलीं .
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
मैनेजिग एडिटर (वेव ) भोजपुरी पंचायत
इंजीनियरिंग स्नातक ;
व्यवसाय : कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
ईमेल : dwivedijp@outlook.com
फ़ेसबुक : https://www.facebook.com/ jp.dwivedi.5
ब्लॉग: http:// dwivedijaishankar.blogspot.in
0 Comments