भोजपुरी के पहिलका वेबसाइट होखला का नाते ई हमार जिम्मेदारी होखे के चाहीं कि हम भोजपुरी के विकास आ बढ़न्ती ला हर संभव सहजोग करीं. एही उद्देश्य से आजु से एगो नया पन्ना खोले जा रहल बानीं अंजोरिया पर. एह पन्ना के नाम ह नया किताब.
नया किताब के एह पन्ना पर भोजपुरी के नया किताबन के प्रचार कइल जाई आ रउरा सभे से उमेद बा कि हर महीना कवनो ना कवनो एगो भोजपुरी किताब जरुर खरीदल करीं, अगर कवनो महीना नया किताब के लिंक ना मिलो त ओह महीना कवनो भोजपुरी पत्रिका के गाहक बनि जाईं. अगर ई दुनू के नया लिंक ना मिले त ओह महीना कवनो ना कवनो भोजपुरी संस्था से जुड़े के काम कर लीं. आ एकरा बादो कुछ रुपिया बाचल होखे त अंजोरिया के दे दीं. लिंक बगल के कॉलम में मौजूद बा.
रउरो सोचत होखब कि महँगी के एह जमाना में ई दान-पुण्य करे खातिर बाचते का बा. त हमार एगो सलाह बा कि बाजार से एगो गुल्लक खरीद ले आईं. आ ओह गुल्लक में रोज कुछ ना कुछ सिक्का डाल दीहल करीं, सिक्का त एह घरी मिलते कतना बा त कवनो छोट नोटे डाल दीहल करीं. अब एही राशि से रउरा भोजपुरी के बढ़न्ती आ पसार खातिर भामाशाह बनि जाएब.
एह घरी राउर अँजोरियो के सहजोग के जरुरत आ पड़ल बा. निहोरा पढ़ि-सुनि के तीन गो भामाशाह अइलें त बाकिर ओकरा बाद फेरु सूखा पड़ गइल बा. एहि दिसाईं हम लिखले रहीं कि –
अगर अब ले नइखीं पढ़ले त आजु पढ़ लीं. रउरा देखब कि ई एक कप चाय भोजपुरी खातिर सजीवनी बूटी बनि जाई. अगर अपना गुल्लक में रोज एक कप चाय के दाम – दस रुपिया (मॉल भा एयरपोर्ट भा बढ़िया रेस्टोरेंट वाला दाम ना ) मात्र डालल करीं त गुल्लक के एही राशि से भोजपुरी के कवनो किताब खरीदे, कवनो भोजपुरी पत्रिका के गाहक बने, कवनो भोजपुरी संस्था भा आन्दोलन के सदस्य बने, भा अंजोरिया जइसन कवनो वेबसाइट के सहजोग करे ला रुपिया बिटोरा जाई. हर काम में पईसा लागेला आ जवन काम एक आदमी ला बोझा बा ओकरा के समाज के अउरिओ लोग बाँट लेव त ऊ हलुक हो जाई आ बाँटे वालन के कवनो बोझ ना पड़ी.
हमार आपन अनुभव बा कि एह बोझा से हर भोजपुरी संस्था, प्रकाशक, लेखक हमेशा दु-चार होखल करेलें बाकिर लोग बोल ना पावे काहें कि ओह लोग के लागेला कि अन्हरा का आगे रोना, आपन दीदा खोना. पढ़ले-सुनले बा लोग बाकिर माने खातिर मन तइयार ना हो पावे कि –
रहिमन वो नर मर चुके जो कहूँ मांगन जाय
उनसे पहिले वो मुवे जिन मुख निकसत नाहि.
इहे बाति अगर आम आदमी वाला भोजपुरी में कहीं त – लाजे भवे बोलसु ना आ सवादे भसुर छोड़सु ना – के कहाउत हो जाईं. ई कहाउत बहुते लोगन के बेजाँय लागी बाकिर ई गजल ( हरिण के दारुण क्रंदन ) सुनावलो ओतने जरुरी बा. रउरा भोजपुरी के आनन्द लेब बाकिर ओकरा ला आपन टेंट हलुक ना करब त दोसर कवन कहाउत कहल जाव.
बीस बरीस से अँजोरिया के प्रकाशन करत आइल बानीं. जब ले जाङर रही तब ले करते रहब बाकिर अब ई आर्थिक बोझा सहे जोग नइखे. रहि गइल हमरा ला. हम त बोलिओ लेत बानी, बाकिर अउर प्रकाशक आ संस्था अपना लाजे कहि नइखन पावत.
अब ई लेख पढ़ चुकनीं त चलीं नया किताब वाला पन्ना पर –
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