खर जिउतिया कइले बाड़ी

खर जिउतिया कइले बाड़ी

– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-6
आइल भोजपुरिया चिट्ठी

 

बहुरा का बाद काकी के जिज्ञासा अउर बढ़ि गइल रहे. कहली- अब ऊ ब्रत बताव जवन महतारी करेले, माने जिउतिया!
लभेरन उचरले- जिउतिया के संस्कृत में जीवित्पुत्रिका कहल जाला. कुआर (आश्विन) महीना का अन्हरिया (कृष्ण पक्ष) में सप्तमी से रहित अष्टमी के एकर अनुष्ठान कइल जाला. मेहरारू लोग बेटा खातिर जिउतिया से बड़ ब्रत ना मानेलिन. मेहरारू लोग चिरंजीवी संतान खातिर एह ब्रत के करेली.

“त तनी ब्रत के बिधियो बिधान बताव. ”

लभेरन कहे शुरू कइले.

जिउतिया के ब्रत निर्जला आ निराहार रहिके कइल जाला. साँझ खा जीवित्पुत्रिका माई के साथ-साथ कुश के राजा जीमूतवाहन के एगो आकृति बना के पूजन कइल जाला. अगिला दिन नवमी में अन्न-जल से पारन कइल जाला. जिउतिया के सँझवत के नहा-खा होला, अउर नहा-धो के पूरा तरह से शुद्ध भइला का बाद शाकाहारी सात्विक खाना खाइल जाला. साँझी खा, जइ गो लइका रहेले सन, तइ गो ओठघन बनावल जाला आ चूल्ही का जरी ओठङ्हा दिहल जाला. ओठङ्हवले का कारन ओकर नाँव ओठघन परल.

सतपुतिया

आजु के दिन के खास सब्जी सतपुतिया होले. नोनी के साग आ मँड़ुआ के रोटिओ आजु खास करके खाइल जाला. खाए से पहिले चील्हो-सियारो खातिर सतपुतिया के पतई पर खाना धइके बाहर कहीं फेंड़ का नीचे भा छत पर राखि आवल जाला. पारनो का दिन ई काम कइल जाला. अगिला दिन साँझ खा जिउतिया के कथा सुनला का बाद बरियार के पौधा सामने रख के बरती लोग कहेलिन-

बरियार केे पौधा

“ए अरियार त का बरियार, जाके राजा रामचंद्र से कहिह कि फलाना (बेटा के नाँव धइके) के माई खर जिउतिया कइले बाड़ी, गंगा नहइले बाड़ी, दही भात खइले बाड़ी. ”

एकरा बाद जिउतिया के राजा जीमूतवाहन आ चिल्हो-सियारो के कथा सुनेली. जब महाभारत युद्ध के अंत हो गइल त अश्वत्थामा का कारन पुत्रशोक से व्याकुल द्रौपदी अपना सखियन का सङे धौम्य मुनि का पासे गइली आ बच्चन के दीर्घायु होखेके उपाय पुछली. धौम्यजी कहलीं- सतयुग में साँच बोलेवाला आ सभके एक आँखि से देखेवाला एगो राजा रहन, जेकर नाम रहे- जीमूतवाहन. एक बेर राजा अपना पत्नी का सङे ससुराल गइल रहन. एक दिन आधा रात खा उनुका कवनो मेहरारू के जोर-जोर से रोवे के आवाज सुनाइल. राजा उनुका पँजरा गइले त देखले कि उनकर बेटा मर चुकल रहे. राजा जब कारन कारन पुछले त ऊ बतवली कि एगो गरुड़ रोज आके गाँव के लइकन के खा जाला. राजा से बर्दाश्त ना भइल. ऊ ओहिजा गइले जहाँ रोज गरुड़ गाँव वालन के भेजल एगो लइका के खा जात रहे. अगिला दिन राजा अपनहीं गइले. समय पर गरुड़ अइले आ राजा पर टूट परले. जब उनकर बायाँ अंग खा गइले त राजा झट से आपन दहिना अंग गरूड़ का ओरि क दिहले. गरुड़ अचरज में परि गइले, पुछले- तू कवनो देवता हव का ? राजा कहले कि रउरा खइला से मतलब बा नू ? मन भर के खाईं, एह तरह के बातन से का फायदा बा ? गरुड़ राजा से प्रभावित भइले आ उनुका कुल-खानदान का बारे में पूछे लगले. राजा बतवले कि हमरा माई के नाँव शैव्या आ बाबूजी के शालिवाहन हटे आ हमार जन्म सूर्य वंश में भइल बा. राजा आपन नाँव जीमूतवाहन बतवले. गरुड़ राजा का दयालुता पर बड़ा खुश भइले आ कहले कि बर माँगऽ. राजा कहले कि हमरा के इहे बर दीं कि रउँवा जतना प्राणियन के खइले बानी ऊ सभ लोग जिंदा हो जासु. अतना सुनते गरुड़ अमृत ले आवे खातिर स्वर्ग चलि गइले आ अमृत ले आके सभ हड्डियन पर बरिसवले. सभ लइका जी गइले सन. तब गरुड़ जी राजा के एगो अउरी बरदान दिहले- आजु कुआर का अन्हरिया में सप्तमी से रहित अष्टमी बा. अब से जवन मेहरारू आजु का दिने जीवित्पुत्रिका माई का सङहीं कुश के ‘राजा जीमूतवाहन के एगो आकृति’ बनाके पूजा करी आ अगिला दिन नवमी में पारन करी, ओकर बंश बढ़त जाई आ फूलत-फलत जाई.

एह ब्रत का बारे में एगो चिल्ही सुन लेले रहे आ ऊ अपना सखी सियारिन के बतवलसि. दूनो एह ब्रत के कइली सन बाकिर सियारिन से भूखि बरदाश ना भइल, ऊ जाके मांस खा लिहलसि. मरला का बाद दूनो के जनम एकही घर में भइल. सियारिन राजा के जेठ बेटी भइलि आ चिल्ही छोट. बड़की के बियाह काशीराज से आ छोटकी के उनुका मंत्री से भइल. बड़ी जानी के जवने संतान होखे, ऊ मर जाय आ छोट जानी के बाल-बच्चा सुघर-साघर आ सकुशल. ई देखिके रानी जलन का कारन कई बेर मंत्री के लइकन के मरवावे के कोशिश कइली, बाकिर नाकाम रहली. अंत में एक दिन उनकर छोट बहिन उनका पुरुब जनम के बात उनुका के इयाद करवली. तब रानी बहुत पवित्रता का साथे एह ब्रत के कइली आ ब्रत का प्रभाव से उनकर संतान जीवित रहे लगली सन.

अगिला दिने नवमी में जे ढेर देर से पारन करेला, ओकरा ब्रत के ‘खर जिउतिया’ कहल जाला माने आँच से जइसे घीव खरा जाला ओइसहीं ऊ लोग संतान का स्वास्थ्य खातिर खर जिउतिया करेली.
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817

ई मेल : rmishravimal@gmail.com

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