‘भोजपुरी में गद्य साहित्य के कमी बा आ भोजपुरी सम्पदा के सदुपयोग गद्य लेखन से ही सम्भव हो सकत बा.’
‘कविता जब कवि के मजबूर करे लागे तबे कविता लिखल जाए के चाहीं.’
‘भोजपुरी खाली अपनी रचनन के बल पर खड़ी बा, दुसरी भाषा के बिधागत नकल आ राजनीतिक रेस से बचल जरूरी बा.’
पिछला १३ मई २०१२ के गोरखपुर के “भोजपुरी संगम” के सताइसवीं बइठकी के अध्यक्षता करत प्रो॰ रामदेव शुक्ल जी एह तरह के कई बात कहलीं. बइठकी में प्रो॰ चित्तरंजन मिश्रजी के कहल रहे कि रचना नया आ पुरान समाज का बीच फँसल मनुष्यता के गाँठि खोलेली सँ. जबले गाँठि ना खुले तबले रचना ठीक ना हो सकी. उहाँ के रचना के ‘दर्शन’ से अधिका असरदार बतावत कहलीं कि रचना आ संवेदना के आपस में अइसन संबंध होला कि अलग- अलग रहला पर दूनों लउक सकी बाकिर मिल गइला पर ना.
बइठकी में प्रो॰ जनार्दन के विचार रहे कि गलदश्रु-भाव आ विगलित नैतिकता कुछ नया रचले से रोकेले. पुरान आ नया में जवन अधिक सार्थक होखे, ऊहे रचना में आवे के चाहीं.
ई सताइसवीं बइठकी अवधेश शर्मा ‘सेन’ के घरे पादरी बाजार में भइल रहे जहाँ पहिलका सत्र में गीतकार धर्मदेव सिंह ‘आतुर’ के पाँच गीतन के पाठ आ ओह पर श्रीधर मिश्र, सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ जी समीक्षा कइले रहीं. श्रीधर जी आतुर जी के गीतन के ध्वनि संप्रेषण में समर्थ आ अपने समय के जाँच-पड़ताल में माहिर रचना बतवलीं. ईहो कहलीं कि समय के शोक, कुण्ठा, शोषण, समाज, पूंजी-बाजार, राजनीति आदि के नया-नया बिम्बन में बान्हि के पारम्परिक रूप-विधान में रचल गइल आतुर के गीत, गीत के आत्मा के साथे छेड़-छाड़ करे वालन के सबको दे रहल बा. समीक्षा-क्रम में पराग जी लयात्मकता, शब्द-विन्यास आ भोजपुरी शब्दन के प्रयोग के दृष्टि से आतुर जी के गीतन के महत्वपूर्ण बतावत छन्दन में व्याप्त कमियन के तरफ इशारो कइलीं.
कथाकार रामनरेश शर्मा जी के लघु कथन से शुरू भइल बइठकी के दुसरका सत्र में अवधेश शर्मा ‘सेन’, आचार्य मुकेश, अरविन्द मिश्र, आचार्य ओम प्रकाश पाण्डेय, अवध बिहारी पान्डेय, त्रिलोकी त्रिपाठी ‘चंचरीक’, राम समुझ ‘सांवरा’, जगदीश खेतान, राजेश्वर द्विवेदी, ज्योति शंकर पाण्डेय ‘ज्योतिष’ के काव्य पाठ भइल.
डा॰ जगदीश प्रसाद त्रिपाठी, शंकर प्रसाद चौधरी के उपस्थिति आ कुशवाहा हरिनाथ, रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, केशव पाठक ‘सृजन’ के सहयोग से संपन्न एह बइठकी में संचालन सत्यनारायण मिश्र ‘सत्तन’ के रहे.
आखिर में भोजपुरी संगम के शुभेच्छु आ भोजपुरी के अपने बीच के सबसे पुरान सिपाही, पेशा से वकील, भोजपुरी साहित्यकार आ संपादक आचार्य प्रतापादित्य (आचार्य जी साल १९६४-६५ में भोजुरी में दैनिक अखबार निकालत रहीं.) आ लोक कवि रामजियावन दास ‘बावला’ के निधन पर शोक मनावल गइल.
– सत्यनारायण मिश्र ‘सत्तन’ के भेजल रपट
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