कहे के त सभे केहू आपन, आपन कहाए वाला के बा ?

(मातृभाषा का सवाल पर….)

कहे के त सभे केहू आपन, आपन कहाए वाला के बा ?

– डॉ ओमप्रकाश सिंह

साल 1982 में रिलीज भइल भोजपुरी फिलिम ‘गंगा किनारे मोरा गाँव’ में महेन्द्र कपूर आ साथियन के गावल आ लक्ष्मण शाहाबादी के लिखल ई गीत बहुते लोग का दिलो दिमाग पर बसल होखी. आजु एकर इयाद हमके बरबस आ गइल जब भोजपुरी के दशा-दुर्दशा पर कुछु बिचारे लगनी गाना के बोल रहल –
कहे के त सभे केहू आपन आपन कहावे वाला के बा’
सुखवा त सभे केहू बाटे, दुखवा बँटावे वाला के बा?

 

भोजपुरी का साथे जवन कुछ हो रहल बा तवना के संक्षेप में कहे के होखे त एह ले आसानी से कुछ अउर ना कहा पाई। भोजपुरी त हमार माईभाषा हियऽ बाकिर हम सार्वजनिक रूप से एकरा से करीब बाइस बरीस से जुड़ल बानी। एह दौरान बहुते कुछ उतार-चढ़ाव देखे के मिलल। दुनिया में भोजपुरी भाषा में पहिलका वेबसाइट के शुरुआत हमहीं कइनी आ आजु ले लाखन परेशानी का बावजूद एकरा के जियतार बनवले रखले बानी। कब ले रख पाएब, नइखी जानत। हँ एगो भामाशाह का कृपा से एकर आर्थिक पक्ष सम्हार लिहला का बाद परेशानी जरूर कुछ कम हो गइल बा।

 

बरीस 2003 में जब अंजोरिया डॉटकॉम ंदरवतपंण्बवउ के प्रकाशन बलिया (उत्तर प्रदेश) से शुुरू कइनी त बस एगो अरमान रहल अपना माईभाषा ला कुछ करे के. सौभाग्य से वेबसाइट बनावे चलावे के कुछ साधारण जानकारी रहल आ ओकरे बल-बूते प्रकाशन शुरु कर दिहले रहीं. हमार पृष्ठभूमि साहित्य आ कला से ना रहला का चलते पहिला दिक्कत आइल प्रकाशन करे जोग सामग्री के। त सबले पहिले भेंटइनी एगो होम्योपैथिक डॉक्टर राजेन्द्र भारती. उहाँ के बलिया से प्रकाशित होखे वाला एगो पत्रिका (उमिर के किनार पर याददाश्त कम होखे लागेला, से ओह पत्रिका के नाम इयाद नइखे पड़त.) के संपादन करत रहीं. प्रकाशन जोग सामग्री देबे के शुरुआती सहजोग उहें से मिलल. बाद में एक दिन अचानक एगो बुकस्टॉल पर ‘पाती’ पत्रिका देखे के मिल गइल। पन्ना पलटनी त देखनी कि अरे इहाँ बलिये से प्रकाशित होले. माननीय डॉ अशोक द्विवेदी जी के फोन नम्बर दीहल रहल पत्रिका में। फोन लगवनी आ आपन समस्या बतवनी. द्विवेदी जी आ भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका पाती से हमार जुड़ाव तबहिये से बा। द्विवेदिओ जी भरपूर जिद्दी जीव हईं। आपन रुपिया लगा के, ज ाङर खपा के, अगढ़ सामग्री के सजा-सँवार के प्रकाशन जोग बनावे के, आ एगो सुन्दर पत्रिका निकाले के समर्पण उहाँ में देखनी. अब उहाँके चलावल एह पत्रिका के अनवरत प्रकाशन आजुओ उहाँ के सुपुत्र प्रगति द्विवेदी जी का प्रयास से अबले जारी बा। शायदे दोसर कवनो भोजपुरी पत्रिका होखी जवन अतना बरीसन से लगातार प्रकाशित होखत आइल बा। आ ‘पाती’ के प्रशंसा एहू ला होखे के चाहीं कि एकर सामग्रिए ना, एकर कलेवरो दोसरा भाषा के कवनो मशहूर पत्रिका से कइल जा सकेला।

 

रउरा सभे सोचत होखब कि हम आत्मश्लाघा में काहें लागल बानी। बाकिर असल बात ई बा कि पाकल आम कब गाछ से टपक जाई ई केहू नइखे जानत। एह चलते एकरा के बता दीहल जरुरी लागत बा। हँ त जब अंजोरिया के प्रकाशन शुरु कइनी तऽ ऊ दौर भोजपुरी सिनेमा के जमाना रहल। भोजपुरी के लोकप्रियता का चलते हिन्दी निर्माता लोग के दिक्कत बुझाए लागल रहल भोजपुरी सिनेमा के मुकाबला करे में. से ओहनी के प्रयास शुरु हो गइल। घर के भेदी लंका ढावे वाला अंदाज में भोजपुरी के कुछ लठधर जुट गइलें आ लागल विरोध होखे भोजपुरी के अश्लीलता के नाम पर। एही दौरान एगो अउर मजगर भोजपुरी पोर्टल के आगमन हो चुकल रहल. जमशेदपुर से चलावल जात रहल एह भोजपुरी पोर्टल ‘भोजपुरिया डॉटकॉम’ का लगे सब कुछ रहल. तकनीकी जानकारी, आर्थिक ताकत, आ एगो समर्पित समूह। भोजपुरी के दुर्भाग्य कहीं कि एह पोर्टलो के कुछ लोग विवाद का घेरा में एह तरह ले के आ गइल कि उबिया के एकरा के बन्द कर देबे के पड़ल।

 

तब भोजपुरी के मौजूदगी इन्टरनेट पर अंगरेजी भाषा में भा रोमन लिपि में रहल. याहू डॉटकॉम पर एगो ग्रूप रहल भोजपुरी के समर्पित. विनय जी, शैलेश जी वगैरह लोग तब एगो भोजपुरी टाइम्स नाम के सोशल मंच चलावे के शुरु कइल लोग. बाकिर सभ कुछ का बावजूद इहो मंच कुछ समय बाद बन्द हो गइल.

 

ओही दौरान ‘महुआ’ टीवी के आगमन भइल। बहुते लोकप्रिय रहल रहल टीवी पर. बाकिर इहो ढेर दिन ले ना चल पावल। अपना एकइस बरीस के अनुभव में देखनी कि बहुते पत्रिका, वेबसाइट, चैनल शुरु भइली सँ बाकिर सभका के जम्हुआ छू देत रहुवे। कहले जाला कि जम्हुआ के छूअला के डर कम, परिकला के बेसी होखेला। भोजपुरी प्रकाशन एह जम्हुआ (टिटनेस) के शिकार हमेशा से होखत आइल बा।

 

सोचे के बाति बा कि कहल जाला कि दुनिया में भोजपुरी बोले वाला लोग तीस करोड़ से बेसी बा। बाकिर अतना बड़हन समूह होखला का बावजूद भोजपुरी के कवनो अखबार ना निकले, कवनो टीवी चैनल टिक ना पावे, आपन लिखलका के अपने खरचा से छपवा के किताब आ पत्रिका का रुप में प्रकाशित करे वाला लोग कम नइखे भोजपुरी में. बाकिर जब केहू ओकरा के देखहीं-पढ़हीं वाला ना भेंटाई, भा ना टिकी, त कब ले खँस्सी के माई खरजिउतिया मना पाई। आ इहे असल कारण बा भोजपुरी के दशा-दुर्दशा के. भोजपुरी के तब के दौर में सबका लागत रहुवे कि भोजपुरी भाषा के संवैधानिक मान्यता मिलिए जाई। बाकिर सब सपने रह गइल. एने पिछला महीना जरुर एगो नीक खबर आइल उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ सरकार का तरफ से. अब सरकार फैसला क लिहले बिया कि विधानसभा में विधायक आपन बाति भोजपुरी, अवधी, ब्रज, आ बुन्देली में कह सकेलें आ बाकी लोग ला ओकर अनुवाद करे के व्यवस्था बन गइल बा।

 

बाकिर का सब कुछ सरकारे भरोसे हो पाई, हमहन मातृभाषा भोजपुरी वाला भोजपुरियन के कवनो जिम्मेदारी ना बने। कुछ प्रभावशाली धनपशु लोग जरुर बा जे भोजपुरी के संस्था के पालन पोषण कर रहल बा बाकिर ओकर कीमत ऊ लोग एहसे वसूल लेला कि ओह संस्था में सबकुछ उनुके मरजी के होखे-चलेला। एहू लोग के ओतना दोष नइखे जेतना आम भोजपुरियन का माथे बा। रउरो एगो सवाल अपना से कर के देख सकिलें कि रउरा भोजपुरी खातिर केतना आ का करत बानी? अगर लोग दिन भर में एको घंटा भोजपुरी के देबे लागे त भोजपुरी के कल्याण हो जाई। रोज कवनो ना कवनो भोजपुरी पुस्तक पढे के जुगत भिड़ाईं। दिन में कवनो ना कवनो भोजपुरी साइट पर पन्द्रह मिनट, आधा घंटा बितावल शुरु कर दीं। रोज कम से कम एगो भोजपुरी गीत-गवनई देखे-सुने के कोशिश करीं। यूट्यूब पर बहुते अइसन वीडियो मिल जाई जवना में बढ़िया गीत-गवनई मिल जाई परिवार का साथे मिल बइठ के सुने जोग। वइसनका गीतन के अपना सोशल साइटन पर साझा करे लागीं त भोजपुरी के बहुते कल्याण होखे लागी। काहे कि जब भोजपुरी सिनेमा, गीत-गवनई, पत्रिका, किताब के समर्थन मिले लागी त ओह काम में लागल लोग के कुछ खरचा-पानी निकले लागी. कवनो भाषा तबले आगे ना बढ़ पावे जब ले ओकरा माध्यम से रोजी-रोजगार-व्यवसाय ना चले लागे.

 

भोजपुरी अगर अबहियों जिन्दा बिया त ऊ गीते-गवनई का बल पर, आम भोजपुरियन के बोलचाल के भाषा बनल रहला का चलते. ना त हिन्दी में बहुते अइसन मूर्धन्य साहित्यकार मिल जइहें जे भोजपुरी इलाका के होखला बावजूद माईभाषा से बेसी मेहरी-भाषा के गुलाम बन गइल बाड़ें. अइसने कुछ नामधन्य लोग हमेशा लँगड़ी मार देला। जब-जब भोजपुरी के विकास के, भोजपुरी के सवैधानिक मान्यता के कोशिश होखेला। आज जब समस्ये रेघरियावल शुरु कइले बानी त भोजपुरी के अखिल भारतीय, अखिल विश्व संस्था सम्मेलनो के दोष कम नइखे। हमरा सबले बेसी पीड़ा होखेला जब हमरा लगे अइसने कवनो संस्था सम्मेलन के खबर आवेला। (बहुते कम संस्था सम्मेलनन के मालूम बा कि भोजपुरी के एगो बाइस बरीस पुरान वेबसाइटो बा) विज्ञप्ति हिन्दी में रहेला आ देखते हमार खून जरे लागेला। अगर भोजपुरी के नाम पर संस्था सम्मेलन चलावे वाला लोग भोजपुरी में आपन विज्ञप्ति जारी ना कर सके, त धिक्कार बा अइसन संस्थन के। अगर रउरा सचहूँ भोजपुरी ला कुछ करे में लागल बानी त राउर मूल विज्ञप्ति भोजपुरी भाषा में रहे के चाहीं आ ओकरा साथ ही हिन्दी-अंगरेजी अनुवाद नत्थी कइल जा सकेला। हिन्दी-अगरेजी समाचार पत्रन में राउर खबरो छप जाई आ ओह लोग के बुझइबो करी कि भोजपुरी ला कटिबद्ध बिया ई संस्था। बाकिर जब राउर विज्ञप्ति हिन्दी में मिली त उनुको पता चल जाई कि रउरा अपना छपास के साध पुरावे में लागल बानी!

 

एगो आउर समस्या कहल जा सकेला एगो सर्वमान्य मानक के कमी। हिन्दी से पढ़ाई करे वाला लोग भोजपुरी बोल भलहीं लेव, पढ़े में ओह लोग के बहुते दिक्कत होखेला. काहें कि भोजपुरी में स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ ले सीमित ना रहि के दीर्घ अ, अल्प ह्रस्व इ, उ, ए, दीर्घ दीर्घ अ, ई, ऊ, ऐ मिलेला. बोलत घरी एकर फरक ओतना ना बुझाव जतना पढ़त घरी होखेला। भोजपुरी में ‘भी’ ‘ही’, आ ‘ने’ के प्रयोग से बचे के चाहीं। ‘कि’ आ ‘की’ के सही प्रयोगो जाने के चाहीं। अवग्रह चिह्न ‘ऽ’ के सही उपयोगो के जानकारी रहल जरुरी बा। एकर प्रयोग कई बेर बेवजह देखे के मिल जाला, जवन ना होखे के चाहीं। भोजपुरी में संज्ञा के रूप संस्कृत लेखा बदलल करेला बाकिर कुछ लोग बहुते असहज हो जाला ‘नरेन्द्रो मोदी’ ‘राष्ट्रपतिओ’ ‘रमेशो’ वगैरह पढ़त घरी असहज होखे लागेला। कुछ लिखनिहार हमरा से एही चलते नाराज हो गइलें कि हम भोजपुरी में ‘भी’ आ ‘ही’ के प्रयोग ना करीं, ना करे दिलें।

 

हमार पृ्ष्ठभूमि कबो साहित्य आ व्याकरण के ना रहल। एह चलते हम कई बेर भोजपुरी के विद्वानन से निहोरा क के थाक गइनी कि मिल बइठ के एगो व्याकरण ना त कम से कम मानक त बनाइए लीहल जाव. बाकिर सभे नकार दीहल। काहे कि ई अइसन विषय बा जवना पर दू गो विद्वान लोग एकमत ना हो सके. बाटे, बावे, बाड़े। बड़ुए, बाने के विवाद से सभे बचल चाहेला आ एही से सभे कतरा के निकल जाला। सभका आपने बात सही लागेला। बाकिर एकर अनदेखी कइला से भोजपुरी के बहुते नुकसान हो रहल बा।

सोचीं कि तीस पैंतीस करोड़ भोजपुरिहन के होखला के का फायदा अगर एगो भोजपुरी अखबार, एगो पत्रिका भा भोजपुरी चैनल बाजार में टिक ना पावे। नवहियन के भोजपुरी से लगाव नइखे रहि गइल काहें कि भोजपुरी रोजी-रोटी के भाषा नइखे बन पावल। भोजपुरी फिलिमन आ टीवी चैनलन के चलल दौर थथम गइल बा। भोजपुरी के लठधर गीत-गवनई के बन्द करावे में अबो ले सफल नइखन हो पवले ई एगो संजीवनी के काम करेले भोजपुरी ला। अरे भाई रउरा फूहड़ गीत से परेशानी बा, त सभ्य श्लील गीत-गवनई के परोसल आ प्रचार शुरु कर दीं। कवनो कमी नइखे भोजपुरी में तथाकथित ‘सभ्य’ ”श्लील“ कहाए जोग गीत-गवनई के। बाकिर घून का साथे जौओ के पीसे में लागल बा लोग। वइसनका लोगन से फरके रहीं। कोशिश करीं कि दोसरा भोजपुरियन से जब बोलब त भोजपुरिए में। हिन्दी भा अंगरेजी में वार्तालाप तबे करीं जब सामने वाला गैर भोजपुरिया होखे। देश के पहिलका राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र बाबू के कबो शरम ना आवत रहे भोजपुरी बोले-बतियावे में. बाकिर मन के छोट आ औकात में भारी लोग भोजपुरी बोले-बतियावे में शरम करेला। माईभाषा से बेसी छोह ओह लोग के मेहरी-भाषा से होखेला. काहे कि मेहरी उनुकर हर जरुरत पूरा करेले। अब हमरा नइखे लागत कि मेहरी-भाषा के नाम लीहल जरूरी बा. रउरो बूझ गइल होखब। नइखीं जानत कि ‘पाती’ खातिर लीखल ई लेख ओमें प्रकाशित हो पाई कि ना। नइखीं जानत कि अगिला अंक में कुछ लिख पाइब कि ना। बाकिर भोजपुरी-मोह अइसन बा कि भोजपुरी के थथमल पानी से उपजल सँड़ाध जिए नइखे देत आ माईभाषा के छोह मुए नइखे देत. रउरा का सोचत बानी?

(भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के नवीनतम अंक (107-108) से साभार)

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