– डॉ राधेश्याम केसरी
ढहल दलानी अब त सउँसे, पुरवइया क झांटा मारे,
सनसनात ठंढा झोका से, देहिया काँप गइल बा।
मेजुका-रेवां गली- गली में, झेंगुर छोड़े मिठकी तान,
रोब गांठ के अँगनैया में, डेरा डाल गइल बा!
बइठ मचाने देके थपरी, दादी हुलें- सिवान।
तब्बो चिरई नइखे भागत, पँखवा तोड़ गइल बा।
सन किरवा क चमक दमक त, आग- सरीखा लागे ला।
पकड़-पकड़ हाथे से ओके, हथवा लहक गइल बा।
रोज निहारीं बदरा-बदरा, चँदा कब्बो ना लउकल!
केतना देखीं ऊपर-नीचे, अँखियाँ उब गइल बा।
अरूआइल चेहरा क लेखा, दुपहरिया अब लागेला।
लाल बुझक्कड़ हमें बताके, पियवा सरक गइल बा।
मनवा त सावन में बाउर, केहू पार न पावे ला।
बन- ठन के बौराइल जिउवा, सगरो- झेल गइल बा।
जरत पेट पर पत्थर बँधली, तब्बो साँझ सतावेला।
दहकत- आग बुतावे ख़ातिर, सावन-सिसक गइल बा!
ग्राम, पोस्ट-देवरिया
जिला-ग़ाज़ीपुर, (यूपी)
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