(लेख)
– सतीश प्रसाद सिन्हा
लोकगीत जन-जीवन, सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज, खान-पान सभकुछ के दरपन होला. लोकगीत क्षेत्रीय लोक जीवन के विशेष रूप स अभिव्यक्त करेला. भोजपुरी लोकगीत दोसर क्षेत्रीय लोकगीतन के तुलना में अधिक विस्तार आ लोकप्रियता पवले बा. एकर कारण शब्दन के बाहुल्य, माटी के सुगंध, मिठास आ सरल भाव बोध के आधिक्य कहल जा सकेला. भोजपुरी के सरल आ सहज भावपूर्ण शब्द अपना के हिन्दी के गीत काफी समृद्ध आ लोकप्रिय भइल बा. सिनेमा के जवना गीतन में भोजपुरी शैली अपनावल गइल उ ‘हिट’ हो गइल.
भोजपुरी गीतन के परंपरा काफी पुराना बा. कवनों तरह के संस्कार होखे, भा शादी-बिआह होखे, रीति-रिवाज होखे, तीज-तेवहार होखे, पूजा-पाठ होखे, जनम-मरण होखे, सभ अवसर खतिर गीत बनल बाड़े स. हरेक मौसम के गीतन में उतारल गइल बा. धान रोपनी होखे भा कटनी भा दंवाई, सभ खातिर गीत बनल बाड़े स. कहे के मतलब कि जिनगी के कवनो अइसन पक्ष नइखे जे लोक-गीत से ना जुड़ल होखे.
भोजपुरी के अतना लोकप्रिय आ सांस्कृतिक भइलो प आधुनिक भाव-बोध आ ओकर समृद्धि का नांव प ओकरा में जहां-तहां दोसर-दोसर हिन्दी के कठिन शब्दन के हरसठे व्यवहार कइ के ओकर मिठास, सरलता, स्वाभाविकता आ भाव बोध के मोसकिल बनावल जा रहल बा. भाषा के प्रगति, समृद्धि, विस्तार भा परिस्कृत करे खातिर ओतने भर प्रयास होखे के चाहीं, जेमे ओकर मौलिकता आ स्वाभाविकता प जांच ना अवे.
भोजपुरी खातिर सबसे बड़ खतरा त ई बा कि आजु भोजपुरी के गीतन में भोजपुरी, शैली आ धुन में अश्लील भाव दे के ओकरा के बजारू आ सड़क छाप बनावल जा रहल बा. अश्लील गीतन के कैसेट का माध्यम से भोजपुरी के अस्मिता बेेंचल खरीदल जा रहल बा. ई दौर के रोके खातिर भोजपुरी भाषा भाषी आ भोजपुरी साहित्य आ गीतन के रचनाकारन के संगठित रूप से आगा आवे के परी. ना त भोजपुरी के आउर छीछा लेदर हो सकेला.
संतोष के बात बा कि भोजपुरी के रचनाकार लोग के ध्यान एह ओरि आकर्षित हो रहल बा. पटना से प्रकाशित होखे वाली लघु पत्रिका ‘कविता’ के संपादक श्री जगन्नाथ जी भोजपुरी गीतन का ओर विशेष रूप से धेयान देले बानी आ लोक-छन्दन के मात्रिक छन्दन में उचित परिस्कार देके आ समय संदर्भ से जोड़ि के लोक विधा के जीवन्त आ समृद्ध बनावे के निहोरा कइले बानी. लोक शैली प आधारित गीतन के विशेषांको प्रकाशित करे के विचार कइले बानी. एकर स्वागत होखे के चाहीं.
पारंपरिक लोक शैली, राग भा धुन में गीत रचल अगर असंभव ना त तनी कठिन जरूर बा. पारंपरिक लोकगीतन में भाव आ विषय कवनो ना कवनो संदर्भ के जड़ से अतना मजबूती का साथे जुड़ल बाड़े स कि ओकरा जगह प कवनो दोसर भाव भा विषय के आरोपित कइल कठिन काम बा. अगर ई कइलो जाव त का भोजपुरी लोगन के भा गीत गवइयन के ग्राह्य-स्वीकार्य हो सकेला? जइसे सावन माह के बरखा गीतन के विषय-भाव, शादी-बिआह के विभिन्न अवसर के भाव, सोहर गीत, छठ के गीत आदि आदि. हमरा विचार से पहिले ओही विषय-भाव के छांदिक गीत के रूप दे के ओह में शास्त्रीयता स्थापित करे के चाही, ताकि भाषा आ छंद का जरिये उ परिस्कृत हो सके आ दोसर भाषा का साथ खड़ा हो सके. पारंपरिक संस्कार-गीतन के विषयो के आधुनिक संदर्भ से जोड़ल जा सकेला, जइसे भोजपुरी के ग्राम शैली में आजकल गीत लिखा रहल बा. ओह गीतन में शास्त्रीयता के गुण आ आधुनिक संबंध के प्रयास कइल जा सकेला. एकरा अलावा इहो सचाई के धेयान में राखल जरूरी बा कि लोक गीतन में भाव आ विषय का साथे संस्कार, संस्कृति लोक-जीवन के पारंपरिक गाथा भी छुपल होला. लोक गीतन का जरिये ओह संस्कृति आ संस्कार के बचावलो ओतने जरूरी बा जतना लोक राग, शैली आ ओकरा में शास्त्रीयता के गुण भरल.
हमनी का सामने प्रश्न ई बा कि लोक शैली के गीतन में ओही विषय के केन्द्र में राखि के आधुनिक भाव-बोध के गीत लिखल जाव, कि पारंपरिक आ संस्कारिक विषय-भाव का जगहा प आधुनिक संदर्भ के भाव-विषय के आरोपित कइल जाव, जइसन कि कुछ लोग के विचार बा, जवना से हम सहमत नइखीं, काहे कि लोक शैली का गीतन के परान ओकर विषय पारंपरिक रीति-रिवाज, जीवन शैली आ संस्कार होला. लोकगीत ओकर वाहक होला.
भोजपुरी गीतन में फूहड़ भाव के रोकना जरूरी बा. ओकर स्तर के उठावे आ परिस्कृत करे के प्रयासो जरूरी बा. ओकरा में छांदिक आ शास्त्रीय गुण भरलो जरूरी बा आ ओके आधुनिक संदर्भ के भाव-बोध देहलो जरूरी बा. एकरा में कवनों दू मत नइखे. बाकी एकरा साथे ईहो धेयान में राखल बहुत आवश्यक बा कि आपन परंपरा आ संस्कार से लोक गीत बिछुड़ ना जावे.
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सतीश प्रसाद सिन्हा,
कल्याण बिहार, अम्बेडकर पथ,
बेली रोड, पटना – 800 014
(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर नवम्बर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
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