लोकगीतन में हंसी-मजाक

लेख

लोकगीतन में हंसी-मजाक

– डॉ भगवान सिंह ‘भास्कर’

 

anjoria post display pic

जीवन में हास्य के बहुत महत्वपूर्ण स्थान बा. विनोदी स्वभाववाला व्यक्ति हमेशा खुद प्रसन्न रहेला आ सम्पर्क में आवे वाला हर व्यक्ति के प्रसन्न राखेला. हंसी-मजाक से मन के उर्जा मिलेला आ व्यक्ति कवनों काम हंसत-खेलत करि लेला. यदि मन ठीक बा त सब ठीक रही आ यदि मन ठीक ना रही त कुछउ ठीक ना रही. एही के तरफ इशारा करत कबीरदास जी कहले हईं –

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.
कह कबीर पीव पाइहें, मनहीं के परतीत.

भोजपुरी में हंसी-मजाक के नीमन खजाना बा. भोजपुरी लोकगीतो एकर अपवाद नइखे. देवर, भाभी, ननद, पति आपस में हंसी-मजाक करि के मन-बहलाव करत रहेले. कुछ उदाहरण देखीं –

मोरा पीछुवरिया बइरिया के गछिया,
हाय रे जियरा.
फरे फूले भुइंया लोटे डार, हाय रे जियरा.

बइर तूरे गइली रे जेठकी भउजिया,
हाय रे जियरा.
गड़ि गइले अंगुरी में कांट,
हाय रे जियरा.

ननद अपना जेठकी भउजी के कहानी कहत बारी – हमरा पीछुवारी बइर के गाछ बा. ओइमें एतना फल लागल बा कि ओकर डाली जमीन पर लोटत बाड़ी सन. जेठकी भउजी ओही में बइर तूरे गइली त अंगुरी में कांट गड़ गइल. अब भउजी के अंगुरी के कांट के निकाली ? भउजी अपना लहुरा देवर पर भरोसा कइले बाड़ी कि उहे कांट निकलिहें. आ उनकर मरद दरद हर लीहन. लोकगीत में झांकी देखी –

‘के मोरे कढ़िहें अंगुरी के कांटवा,
हाय रे जियरा?
के ई दरदिया हरिहें मोर, हाय रे जियरा?

देवर मोरे कढ़िहें अंगुरी के कांटवा,
हाय रे जियरा.
संईया दरिदिया हरि लेय, हाय रे जियरा.’

अपना मन के बात जब उ अपना देवर से कहत बाड़ीं त उनकर देवर कांट के कढ़वनी मांगत बाडे़ं –

‘कांट के कढ़वली भउजी,
काहो देबू दानवा, हाय रे जियरा?
काढ़ी देबो अंगुरी के कांट,
हाय रे जियरा.’

उनकर भउजाई कांट के कढ़वनी में हाथ के मुनर देबे के तइयार बाड़ी, बाकिर उनका देवर के मंजूर नइखे. लोकगीत में वर्णन देखीं –

‘तहरा के देबो देवर हाथ के मुनरवा,
गोतिनी के देबो गले हार, हाय रे जियरा.
आग लगइबो भउजी हाथ के मुजरवा,
बजर घसइबो गले हार, हाय रे जियरा..’

भउजाई कहत बाड़ी- ‘हे देवर, हम अपना हाथ के मुनर तोहरा के देब आ गोतिनि के गला के हार देब.’

एहपर देवर कहत बाड़े- ‘ऐ भउजी, तहरा मुनर के हम आग लगा देब आ तोहरा गला के हार के पत्थर पर घिस देब.’

कांट के कढ़वनी में देवर के का चाहीं, तनी उहो देखीं –

‘तोहरो खोंइछवा भउजी, दुई नरियरवा,
हाय रे जियरा.
वोही में से करऽ एगो दान, हाय रे जियरा.’

देवर कहत बाड़े- ‘हे भउजी, तोहरा खोंइछा में दूगो नारियल बा. वोही मेें से एगो हमरा के दान कर द.’ देवर के बात सुनि के भउजाई जबाब देत बाड़ी, तनी उहो देखीं –

‘जेकर लागल देवर, साठी रूपइया,
हाय रे जियरा.
सेहू नाहीं कइले नेवान, हाय रे जियरा.
पहिले त खाले भउजी, चोंचवा से चिरई,
हाय रे जियरा.
पाछे खाले खेत रखवार, हाय रे जियरा.’

भाभी कहत बाड़ी – ‘हे देवर, जेकर साठ रूपया लागल, उहो नेवान ना कइलन. भला तूं कइसे दान लेबऽ ?’

एह पर देवर कहत बाड़े- ‘हे भउजी, पहिले चिड़िया चुरूंग खालेला, ओकरा बादे खेत के रखवार खाला.’

एगो दोसर उदाहरण देखीं. एगो मेहरारू के पति परदेश बा. मेहरारू के देवर अपना (भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)
भउजाई से अपना भइया के सूरत भुला जाये के कहत बा. लोकगीत में झांकी देखीं –

कथि बिनु भउजी हो, ओठवा झुरइले,
कथि बिनु?
ए ढरेला नयना लोरवा, कथि बिनु?

पान बिनु देवरू हो ओठवा झुरइले,
रउरा भइया बिनु,
ए ढरेला नयना लोरवा, भइया बिनु.

एहपर देवर भाभी से पान खाये के आ अपना भइया के सूरत भुला जाये के कहत बाड़ें –

खा लेहु भउजी हो, पाकहा पानवा
बिसरि देहु मोरे भइया के सुरतिया.

एहपर भउजाई खीसिया जात बाड़ी आ कहऽतारी –

‘आग लगइबो देवर, पाकल पानवा,
ना बिसरी रउरा भइया के सुरतिया.’

एगो अउर उदाहरण देखीं जवना में पति-पत्नी के हास परिहास के वर्णन बा. पति परदेश जा रहल बाड़े. पत्नी के फिकिर बा कि अब उ केकरा खातिर खाना बनइहे आ केकरा खातिर पान क बीरवा लगइहें –

‘पिया मोरे गइले हो, पुरूबी बनिजिया.
के हो जेइहें, हमरो जेवनवा?
घरवा त बाड़े धनि, लहुरा देवरवा.
उहे जेइहें, धनि तोहरो जेवनवा.
देवरू के जेवल मोरा, मनहि ना भइहें.
सकल जगहिं, देवर जूठवा गिरइहें..’

पत्नी कहत बाड़ी कि पति के पूरब दिशा गइला पर हमार खाना के भोग लगाई? पति कहत बाड़े – ‘हे प्राण प्यारी, लहुरा देवर घरे बाड़े, उहे तोहार जेवना जेइहें.’ एहपर पत्नी कहत बाड़ी कि देवर के जेंवल हमरा नीमन ना लागी. देवर खाये के त खा लीहें बाकिर दुनिया भर में जूठ गिरइहें, यानि सब जगहा कहत फिरिहें.

पति-पत्नी के हास परिहास के एगो अउर उदाहरण देखीं. दूबर पातर पति के मेहरारू केतनों खिया के हार गइल, उ ना मोटइले. उ उनका के गिरगिट कहि के अपना बाबा से एहतरे कहत बिया –

‘अपना हि बाबा के, का हम बिगड़नी?
खोज दीहले गिरगिटवा दमाद.
नव मन आटावा के, पुड़िया खिअवनीं.
तबो नाहीं गिरगिटवा मोटइले.
नवमन सरसों के, तेलवा लगवनीं.
तबो नाहीं गिरगिट चिकनइले.
नव मीटर कपड़ा के सूटवा सिअवनी.
तबो नाहीं गिरगिटवा ढंपइले.

एह तरे हमनी देखत बानी कि भोजपुरी लोकगीतकार लोकगीतन का माध्यम से विभिन्न सामाजिक, पारिवारिक, आध्यात्मिक आ राष्ट्रीय समस्यन के संगे-संगे हास-परिहासो से भोजपुरी लोकगीतन के समृद्ध करे के प्रयास कइले बा लोग. जवन प्रशंसनीय बा.

एह तरे भोजपुरी लोकगीतन में हास-परिहास के संक्षेप में चर्चा भइल.

———————

डॉ भगवान सिंह ‘भास्कर’

महामंत्री, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन,
निवास: प्रखण्ड कार्यालय के सामने, लखरांव, सिवान 841226

(भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर अक्टूबर 2003 में प्रकाशित भइल रहल.)

1 Comment

  1. Editor

    एह लेख के आनन्द ऊ लोग अउरी बढ़िया से ले पाई जे एकरा दुअर्थी संवादन के समुझ पाई.