– मनिर आलम
सब ख़ुशी बा लोग के दामन में.
बाकिर हंसी खातिर समय नइखे.
दिन रात घूमत दुनिया में.
जिनिगी खातिर समय नइखे.
महतारी के लोरी के एहसान सब के बा.
बस महतारी कहे खातिर समय नइखे.
सब नाता रिश्ता त मर चुकल बा.
अब ओके दफनावे खातिर समय नइखे.
सब नाम मोबाइल में राखल बा.
बस दोस्ती खातिर समय नइखे.
गैर के सामने कइसे बात करी.
जब अपने लगे समय नइखे.
आँख में बा गहरा नींद भरल.
बस सूते खातिर समय नइखे.
करेजा में बा अपन दुःख भरल.
बस रोये खातिर समय नइखे.
पैसा के सामने अइसन भगनी.
की अपने खातिर समय नइखे.
प्यार क एहसास के का कदर बा.
जब सपने खातिर समय नइखे.
अब तूही बतावऽ अय जिनिगी.
ई जिनिगी के का हो गइल बा.
कि हरदम मरे वाला के.
जिए खातिर समय नइखे ! समय नइखे !!
इनर्वामाल-हरनहिया बारा (नेपाल)
हालमे: दोहा-कतार
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मोबाइल: +९७४-५५३८७३२९
bahut bahut achha ba
मनिर आलम जी बहुत नीक लागल राउर रचना .
गीतकार :-
ओ.पी अमृतांशु
Are vah bhaiya bada niman likhle bada ho
“कि हरदम मरे वाला के.
जिए खातिर समय नइखे ! समय नइखे !!”
बहुत खूब मनीर भाई.बहुत नीक कहनी.केहू के एगो शेर याद आ गइल-
“जिंदगी जिंदादिली का नाम है
मुर्दादिल खाक जिया करते हैं !”
शुभकामना.
-रामरक्षा मिश्र विमल