रहे एगो आस रे…

– ओमप्रकाश अमृतांशु

omprakash_amritanshu
KhooniHoli-by-Amritanshu
डहके मतरिया रे , छछनेली तिरिया,
बाबुजी बांधत बाड़न, बबुआ के लाश रे,
जिनिगी के जिनिका पे रहे एगो आस रे.

ढरकत लोरवा के छोरवा ना लउके,
भइल सवार खून माथवा पे छउंके,
पारा-पारी सभेके धोआइल जाता मंगिया,
बाबुजी बांधत बाड़न, बबुआ के लाश रे,
जिनिगी के जिनिका पे रहे एगो आस रे.

नान्हका के जान के बदलवा लिआई,
ओकरे खुनवा से होली खेलल जाई,
खदकत बा इहे रोजगार दिने रतिया,
बाबुजी बांधत बाड़न, बबुआ के लाश रे,
जिनिगी के जिनिका पे रहे एगो आस रे.

दुधमुहाँ के मुहँ से दुधवा छिनाता,
बिहंसल छतिया बिहुन भइल जाता,
धह-धह दुखवा के धधकेला अँचिया ,
बाबुजी बांधत बाड़न, बबुआ के लाश रे,
जिनिगी के जिनिका पे रहे एगो आस रे.

छोट-बड़ जतिया के भइल बा लड़ाई,
उजड़ल जाता सभे के बिरवाई,
थथमि गइल अमृतांशु के कलमिया,
सूझे नाहि रहिया लागल उदवास रे,
जिनिगी के जिनिका पे रहे एगो आस रे।

4 Comments

  1. jay

    बहुत बढ़िया भाव से बोथाइल बा रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद।।।

  2. kiran

    nice geet

  3. ranjit

    सुन्दर सा भाव

  4. swayambara

    बहुत मार्मिक ….

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