– डॉ० हरीन्द्र ‘हिमकर’
पहिल
गीत कवन गाईं एह गीतन का गाँव में
पाहुन-सन मन रहल लजाइल.
धनखेती में फूटल सोना
रुपनी बइठल बीनत मोना
जाँता से जिनिगी लपटाइल
छंद झर रहल घर का कोना
पाकड़ का पतइन से चिरइन के शब्द झरल
सरसों-सन रह गइल छिंटाइल.
गगरी से छलक गइल पानी
बिखर गइल धरती पर चानी
छम-छम-छम बाजल पैजनियाँ
बउक भइल मनमउजी बानी
भाव भींज के चूअल सितिआइल धरती पर
माटी में रह गइल समाइल.
कनइल के कंगन आ बाला
गेना के भर-गर के माला
हरसिंगार से भरल इ जूड़ा
फूल बनल फूलो वन-बाला
बँसुरी के तान बरस के भीनल दिशा-दिशा
गरभल स्वर-सरगम लरिआइल.
बाजल घुँघुर खनकल चूरी
मिल गइल किसान के मजूरी
सोहर-झूमर बरस के पसरल
कम भइल बिरहियन के दूरी
गँवई धूरा जहवें से उड़ल गीत बनल
गीत हमर रह गइल भुलाइल.
दुसर गीत
मूसा घूसल बाटे, देसवा के चाल जाई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
सगरी ताना-बान काटी
चिद्दी-चिद्दी होई टाटी
फुटमत हमनी का घर-घर में आके डाल जाई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
बूसा-मूसा जीव विदेशी
बेसी खाला माल-मवेशी
हड्डी-गुड्डी खाई, अपना बखरा नाल आई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
बुद्धी कीनी देके डॉलर
कर्जा दे के पकड़ी कॉलर
आपन राग अलापी, अपना हाथे झाल आई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
मंदिर में, मस्जिद में बाँटी
घूमी घर-घर, घाटी-घाटी
सपना के सूरज ले, दुअरी पर दलाल आई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
ओकर पंजा बा ‘रोबोटी’
छीनी झपटी रोजी-रोटी
अझुरा सझुरी नाहीं, पावें-पावें जाल अई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
मूसा बाँटे रोज मिसाइल
सउँसे धरती बा घबराइल
कतनो गाँठ लगइबऽ, तूरे साले-साल आई
भूसा छोड़ी, माल खाई ना.
डॉ० हरीन्द्र हिमकर
अध्यक्ष हिंदी विभाग
के० सी० टी० सी० कॉलेज, रक्सौल, पूर्वी चम्पारण, बिहार ८४५३०५
मोबाइल :- 09430906202
भोजपुरी एवं हिंदी भाषाओं में नियमित लिखत रहीले. एगो भोजपुरी खण्ड काव्य ‘रमबोला’ आ एगो बालगीत संग्रह ‘प्यारे-गीत हमारे गीत’ प्रकाशित हो चुकल बा.
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