बिदेसिया – भिखारी ठाकुर के अमर कृति

bidesiya

भोजपुरी साहित्य में भिखारी ठाकुर के नाटक “बिदेसिया” एगो अमर रचना मानल जाला. ई नाटक भोजपुरी समाज के हृदय से जुड़ल बा, आ आजुओ लोकजीवन में ई ओतने प्रासंगिक बा जेतना लिखाई के समय, सन 1912 में, रहल. भिखारी ठाकुर, जे “भोजपुरी के शेक्सपियर” कहल जालन, समाज के दुःख-दर्द आ प्रवासन के कहानी के अपना अनूठा शैली में प्रस्तुत कइले बाड़न. “बिदेसिया” भोजपुरी के एगो सबसे प्रसिद्ध आ लोकप्रिय नाटकन में गिनल जाला.

“बिदेसिया” के कहानी

“बिदेसिया” नाटक एगो साधारण परिवार के आर्थिक तंगी के जद्दोजहद के कहानी ह, जवन भोजपुरी समाज में आजो विद्यमान बा.  मुख्य पात्र बिदेसिया के बियाह एगो सुन्दर लइकी से भइल. बियाह के कुछ दिन बाद बिदेसिया अपना दुलरुआ पत्नी के गवना करा के अपना घरे ले अइले. अपना पत्नी के सुंदरता अउरी प्रेम से अभिभूत होके बिदेसिया उनके ‘पियारी सुंदरी’ नाम से पुकारे लगले.

बिदेसिया गरीबी में जियस. गाँव-जवार के लोग कलकत्ता आ आसाम कमाए खातिर जात रहे आ पइसा जमा क के घरे लवटत रहे. बिदेसिया सोचले कि उहो कलकत्ता जाके मेहनत-मजूरी क ​​के कुछ पईसा कमा के फेर घरे लवट के अपना प्यारी सुन्दर पत्नी के संगे सुख से रहे.

बिदेसिया कमाये खातिर कलकत्ता जाये के प्रस्ताव प्यारी सुंदरी से रखलन, बाकिर उ इंकार कै देहलसि. विदेसिया के ख्वाब रहे कि कलकत्ता गइला पे उनकर किस्मत बदल जाई. पियारी सुंदरी के मन में डर रहे कि कहीं ओकर पति कलकत्ता जाके औरन के बहकावे में ना फँसि जाए. पियारी सुंदरी के मन के बात के ऊपर ध्यान ना देके बिदेसिया एक रात चुपके से घर से निकल गइले.

कलकत्ता पहुंच के बिदेसिया बहुत मेहनत-मजूरी करे लागले. एक दिन उनकर भेंट एगो युवती “सलोनी” से हो गइल. अकेलापन के कारण उनकर मन सलोनी के ओर आकर्षित हो गइल. धीरे-धीरे दूनों के बीच नजदीकी बढ़े लागल आ एक दिन दुनो बियाह कई लिहले. जबकि  गांव में पियारी सुंदरी अपना पति बिदेसिया के याद में बहुत रोवत रहे.

ओकरा पति के बिना ओकर जिनिगी अधूरा हो गइल रहे. एक दिन एगो बटोही ओकरा गांव से गुजरल, ओकरा पियारी सुंदरी के दुःख के कहानी सुनके बहुत दुःख भइल, से उ बिदेसिया के खोजे खातिर कलकत्ता जाये के फैसला कइलस आ पियारी सुन्दरी के बचन दिहलसि कि उ बिदेसिया के खोज ले आई.

कलकत्ता पहुंच के बटोही बिदेसिया के खोजल करे, त एक दिन उनके बिदेसिया मिलिए गइल. जब बिदेसिया अपना पियारी सुंदरी के कहानी बटोही से सुनलस त अपना गांवे वापस जाये के मन बना लिहलसि, बाकिर अब सलोनी जाये न देस. बार-बार समझौला से सलोनी बटोहिया के बात मान गइल आ बिदेसिया के गांव वापस जाए देबे ला तइयार हो गइल.

बिदेसिया अपन गांवे वापस त आ गइल लेकिन, ओकरा लगे कुछई ना रहे. पियारी सुन्दरी से मिल के आपन दुख बतवलसि कि सब कमाई ओकर कलकत्ता वाली पत्नी “सलोनी” ले लिहलसि. पियारी सुंदरी अपना पति के हालत देख के बहुत दुखी भइल लेकिन ओकरा पति के वापस अइले के बहुत प्रसन्नता रहे. पियारी सुन्दरी अपना पति के समझवलसि कि जब पति साथे रहियें त जिंदगी के सब कष्ट हंसी-खुशी सहि ली.

एहि बीच कलकत्ता से सलोनियो आपन लइकन संगे बिदेसिया के गांवे आ जात बिया. पियारी सुन्दरी खुशी-खुशी सलोनी के स्वीकार कर लेतारी आ ओही गरीबी में सब मिलजुल के एक साथ रहे लागल.

नाटक के संदेश

“बिदेसिया” भिखारी ठाकुर के एगो कालजयी रचना ह, जे भोजपुरिया समाज के सच्चाई के आईना दिखावेला. ई नाटक केवल मनोरंजन के साधन ना, बाकिर समाज के सोच बदले के ताकत रखेला. आजुओ “बिदेसिया” भोजपुरी समाज के गर्व बा आ इ भोजपुरी साहित्य के अमूल्य धरोहर बा.

ई नाटक सन्देश देला कि रूपया-पइसा से खुशी ना होला, परिवार के साथ रहि के आ सुख-दुख बाँट के जियला में जवन खुशी बा उ बिखरला में नइखे.

आजो परदेश आ परिवार के संघर्ष जारी बा

भिखारी ठाकुर “बिदेसिया” में एक तरफ बिदेसिया के संघर्ष, जे परदेश में आपन सपना पूरा करे ला, त दोसरा तरफ ओकर पत्नी के पीड़ा देखावेले, जवन घर में एकाकी जीवन जी रहल बा. बिदेसिया एगो व्यक्तिगत कहानिये ना होके भोजपुरिया समाज के बड़का हिस्सा के जीवन के सचाई बा. आजुओ कई लोग रोजी-रोटी के खोज में आपन गांव-घर छोड़ के परदेश (बिदेस) जात बा.

 

 

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